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२/६१ लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४८१ . मौलिक अन्तर की दृष्टि से भट्टि की अपेक्षा भट्टभूम का काव्यनिर्माण कार्य अधिक क्लिष्ट और चमत्कारपूर्ण है। _इस दृष्टि से भी हमारा भी यही विचार है कि भूमक भट्टि से पूर्ववर्ती है। . .
टीकाकार-वासुदेव - ५ सौभाग्य से रावणार्जुनीय अपरनाम अर्जुनरावणीय काव्य की वासुदेव नामा विद्वान् विरचित टीका का एक हस्तलेख मद्रास के राजकीय हस्तलेख संग्रह में विद्यमान है । द्र०-सूचीपत्र भाग ४, खण्ड । १०, पृष्ठ ४२८१, संख्या २९५४ ।। इस हस्तलेख का आदि पाठ इस प्रकार है'वासुदेवैकमनसा वासुदेवेन निर्मितम् । . वासुदेवीयटीकां तां वासुदेवोऽनुमन्यताम् ॥' इसके अन्त का पाठ इस प्रकार है'इति अर्जुनरावणीये रषाभ्यां पादे सप्तविंशः सर्गः। .
अर्जुनरावणीयं समाप्तम् ।' इस वासुदेव का निर्देश नारायण भट्ट अथवा नारायण कवि के धातु-काव्य पर रामपाणिवाद की एक टीका का हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह में विद्यमान है। उसके प्रारम्भ में लिखा है'उदाहृतं पाणिनिसूत्रमण्डलं प्राग्वासुदेवेन तदूर्ध्वतोऽपरः। .. उदाहरत्यद्य वृकोदरोदितान् धातून क्रमेणव हि माधवसंश्रयात् ।' २०
धातुकाव्य का रचनाकाल वि० सं० १६१७-१७३३ तक है। अत. इसकी टीका में उद्धृत वासुदेव सं० १६५० वि० से तो पूर्ववर्ती अवश्य होगा।
इससे अधिक इस टीका और टीकाकार के विषय में हम कुछ नहीं जानते।
संस्कृत-साहित्य के इतिहास लेखकों ने भट्टभूम के रावणार्जुनीय काव्य का निर्देश तो किया है, परन्तु इस टीका का संकेत भी किसी ने नहीं किया।