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________________ अन्तिम रूप से संशोधित परिष्कृत परिष्कृत और परिवर्धित प्रस्तुत संस्करण 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' ग्रन्थ के द्वितीय भाग का द्वितीय संस्करण भी कई वर्षों से अप्राप्य हो चुका था । परन्तु कई प्रकार की विघ्न-बाधाओं के कारण इस संस्करण के प्रकाशित होने में विलम्ब हुआ । इस बार भी पूर्व संस्करण के समान तीनों भागों का प्रकाशन एक साथ कर रहा हूं । प्रथम और द्वितीय भाग का मुद्रण साथ-साथ होने से द्वितीय भाग के पिछले संस्करण में प्रथम भाग में लिखे गये विषय की सूचना के लिये प्रथम भाग की जो पृष्ठ संख्या दी गई थी, वह नहीं दी जा सकी । अतः ऐसे स्थानों में प्रथम भाग के प्रकरण का ही निर्देश किया गया है । शारीरिक स्थिति ठीक न होने के कारण मैं इस ग्रन्थ के प्रस्तुत अन्तिम रूप से परिशोधित एवं परिवर्धित संस्करण को शीघ्र से शीघ्र प्रकाशित करना चाहता था, जिस से यह कार्य किन्हीं प्राकस्मिक कारणों से अधूरा न रह जाये । विशेष – द्वितीय भाग प्रथम भाग छपने के लगभग ११ वर्ष पश्चात् प्रथम वार छपा था । इस दृष्टि से यह द्वितीय भाग का तृतीय संस्करण है, तथापि तीनों भागों की एक साथ विक्री होने तथा पृथक् पृथक भागों की विक्री न करने के कारण इस बार इस भाग के मुख पृष्ठ पर 'तृतीय संस्करण न छापकर चतुर्थ संस्करण छाप रहा हूं, जिससे सब भागों के सह प्रकाशन में एकरूपता आ जाये । इस भाग में छुपने के पश्चात् कुछ आवश्यक संशोधन और परिवर्धन हुए हैं, उन्हें तृतीय भाग के १०वें परिशिष्ट में दे रहा हूं । पाठक महानुभाव से प्रार्थना है कि उन उन स्थानों को उस के अनुसार संशोधन करके तथा परिवर्धित अंशों को मिला कर पढ़ने की कृपा करें ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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