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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास भण्डारकर प्राच्य शोध प्रतिष्ठान पुणे ने सन् १९६७ में प्रकाशित किया है।
श्री स्वामीनाथन् के संस्करण के अधूरा होने से हमने श्री काशीनाथ अभ्यङ्कर के संस्करण का उपयोग किया है। जिस समय मैंने सं० व्या० शास्त्र का इतिहास लिखा था, उस समय रामलाल कपूर ट्रस्ट बहालगढ़ (सोनीपत) के पुस्तकालय में विद्यमान लिखित प्रतिलिपि का उपयोग किया था। अतः महाभाष्यदीपिका. के जितने भी उद्धरण इस ग्रन्थ में दिये हैं, उन पर इसी हस्तलेख की पृष्ठ संख्या दी थी। तृतीय संस्करण में तत्तत्स्थानों में उद्धत पाठों के पूना संस्करण के पृष्ठों के परिज्ञान के लिये तीसरे भाग के आठवें परिशिष्ट में हस्तलेख और पूना संस्करण दोनों की तुलनात्मक पृष्ठ संख्या छापी थी। इस संस्करण में हस्तलेख की पृष्ठ संख्या के साथ ही पूना संस्करण की पृष्ठ संख्या भी दे दी है। हस्तलेख की पृष्ठ संख्या इसलिये नहीं हटाई कि पाठकों को यह ज्ञात हो कि मैंने महाभाष्यदीपिका के पाठ हस्तलेख के आधार पर ही संगृहीत किये थे। ___ ३-परिभाषा-संग्रह-सम्पादक पं० काशीनाथ बासुदेव अभ्यङ्कर पुणे । प्रकाशक-भण्डारकर प्राच्यशोध प्रतिष्ठान पुणे, सन् १९६७ । इस ग्रन्थ में सभी व्याकरणों के उपलब्ध परिभाषा पाठ और उनकी वृत्तियों का संग्रह है।
सं० व्या० शा० का इतिहास के पूर्व संस्करणों में विभिन्न स्थानों में छपी परिभाषावृत्तियों की पृष्ठ संख्या दी थी। प्रस्तुत संस्करण में पूर्व मुद्रित ग्रन्थों की पृष्ठ संख्या के साथ इस संग्रह की पृष्ठ संख्या भी दे दी है, जिस से पुराने संस्करणों के दुर्लभ हो जाने के कारण पाठकों को असुविधा न होवे। .
४-उणादिमणि-दीपिका-रामचन्द्र दीक्षित । मद्रास, सन् १९७२
५-प्रदीप-व्याख्यानानि- महाभाष्य प्रदीप पर उपलब्ध व्याख्या ग्रन्थों का संकलन । १-६ भाग, षष्ठ अध्याय पर्यन्त पाण्डिचेरि से छपा है । सन् १९७३-१९८२ ।
'६-स्वर-प्रक्रिया-शेष रामचन्द्र कृत । पूना, सन् १९७४ । __अब हम उन शोध-प्रबन्धों का उल्लेख करेगें जिन्हें विविध