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लिङ्गानुशासन - मुग्धबोध में प्राप्त लिङ्गनिर्देशों तथा प्रयोगों १० के आधार पर गिरीशचन्द्र विद्यारत्न ने लिङ्गानुशासन से सम्बद्ध कुछ सूत्रों का संकलन किया ।'
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शोध प्रबन्ध में डा० शन्नो देवी ने लिखा है - "बेल्वाल्कर के मत में रामतर्क वागीश ने मुग्धबोध से संबद्ध उणादिकोश की रचना की । हरप्रसाद शास्त्री के मत में रामशर्मा ने पद्यरूप में उणादि की रचना की, जिस पर तर्कवागीश ने टीका लिखी । रामशर्मा का यह कोश पाणिनि कात्यायन और पतञ्जलि के मत पर आधारित है । उसने अपनी यह रचना मुग्धबोध के 'नान्ये तिक् च' सूत्र की टीका के आधार पर की । वस्तुत: यह पाणिनीय सम्प्रदाय का ग्रन्थ है, जिसे तर्कवागीश ने मुग्धबोध से जोड़ा ।””
परिशिष्टकार
to बेल्वाल्कर के मतानुसार मुग्धबोध-सम्प्रदाय की पूर्णता के लिये कुछ विद्वानों ने मुग्धबोध व्याकरण से सम्बद्ध कुछ परिशिष्टों को १५ रचना की ।
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१ - नन्दकिशोर भट्ट - नन्दकिशोर भट्ट ने 'गगननयनका लक्ष्मा' मित शक संवत्सर ( १३२० - वि० सं० १४५५ ) में मुग्धबोध पर परिशिष्ट लिखे तथा मुग्धबोध पर व्याख्या भी लिखी ।* २ - काशीश्वर ३ - रामतर्क वागीश
रामतर्क वागीश ने उणादिपाठ की रचना की थी यह हम पूर्व लिख चुके हैं ।
४ - रामचन्द्र विद्याभूषण ने शक सं० १६१० (= १७४५ वि० सं०) में परिभाषा वृत्ति लिखी थी।
मुग्धबोध के टीकाकार
१ - नन्द किशोर भट्ट (सं० १४५५ वि० )
इस के विषय में हम ऊपर लिख चुके हैं ।
१. वोपदेव का सं० व्या० को योग दान पृष्ठ ४३६ । २. वही, ४४० ।
३. सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पैराग्राफ ८५ ।
४. इण्डिया आफिस के संस्कृत हस्तलेखों की सूची, संख्या ८७२ ।