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७१६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इस का प्रचार यद्यपि बङ्गाल तक ही सीमित है तथापि यह वैयाकरण निकाय में बहत प्रतिष्ठित हा । इस के उद्धरण प्रक्रियाकौमुदी तथा उसकी प्रसाद टीका में बहुतायत से मिलते हैं। उत्तरवर्ती भट्टोजि
दीक्षित आदि ने बहुत्र इस के मत उद्धृत किये हैं। २. परिचय'-वोपदेव के पिता का नाम 'केशव' था। यह अपने
समय का प्रसिद्ध भिषक् था। पितामह का नाम 'महादेव' था। वोपदेव के गुरु का नाम 'धनेश' था । यदि इसी धनेश का ही धनेश्वर भी नाम होवे तो मानना होगा कि इसने महाभाष्य की 'चिन्तामणि' नाम
की एक व्याख्या लिखी थी। धनेश ने वैद्यक का 'चिन्तामणि' संज्ञक १० ग्रन्थ लिखा था, यह सर्वप्रसिद्ध है। धनेश और धनेश्वर नाम की अर्थ
साम्यता और दोनों ग्रन्थों की चिन्तामणि नाम की साम्यता से हमारा मत यही है कि वोपदेव के गुरु धनेश ने ही महाभाष्य की 'चिन्तामणि' नाम्नी व्याख्या लिखी थी। इस का उल्लेख हम पूर्व
पृष्ठ (४३४) पर कर चुके हैं। अनेक आधुनिक विद्वान् महाभाष्य १५ की चिन्तामणि व्याख्या के लेखक धनेश्वर का काल विक्रम की १६वीं
शती मानते हैं। ___ वोपदेव ने अपने ग्रन्थों में 'वेदपद' 'वेदपदोक' 'वेदपदास्पद'
आदि का निर्देश किया है । कविकल्पद्रुम के अन्त में तेन वेदपदस्थेन
वोपदेवद्विजेन यः निर्देश मिलता है । इस के आधार पर अनेक विद्वान् २० वोपदेव को वेदपद नामक ग्राम वा नगर का निवासी मानते हैं। ...' बाररुच संग्रह की नारायण कृत दीपप्रभा टीका के अन्त में वेदोनाम
महत्पदं जनपदो यत्र द्विजानां ततिः वचन में वेदपद नामक जनपद का उल्लेख हैं। इस की तुलना से वोपदेव का जनपद वेदपद होना
चाहिये न कि ग्राम वा नगर । मुग्धबोध के अन्त में उल्लिखित वोप२५ देवश्चकारेदं विप्रो वेदपदास्पदम् वचन में वेदपदास्पद ग्रन्थ का वोधक
है। अथवा यहां वेदपदास्पदः शुद्ध पाठ मानना चाहिये । प्राधनिक विद्वान् 'वेदपद' की तुलना 'वेदोद' नाम से करते हैं । यह जिला
आदिलाबाद में है। ___ वोपदेव हेमाद्रि से पोषित था । हेमाद्रि देवगिरि (वर्तमान
३०१ यह परिचय डा० शन्नोदेवी के 'वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को .., : योगदान' नामक शोधप्रबन्ध के आधार पर लिखा है।