SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तिम रूप से . संशोधित परिष्कृत और परिवर्धित प्रस्तुत (चतुर्थ) संस्करण व्याकरण शास्त्र जैसे नीरस विषय के वाङमय पर लिखे गये 'संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास' नामक बृहत्तम ग्रन्थ का मेरे जीवन काल में (३४ वर्षों में) चतुर्थवार प्रकाशित होना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि व्याकरण-शास्त्र के विद्वानों और व्याकरणशास्त्र में शोध करनेवाले व्यक्तियों ने इसे बड़े आदर के साथ अपनाया है। मेरे द्वारा पाश्चात्त्य विद्वानों द्वारा निर्धारित भारतीय काल-गणना का प्राश्रयण करने पर भी संस्कृत व्याकरण शास्त्र का एकमात्र साङ्गपूर्ण प्रथम इतिहास ग्रन्थ होने से अनेक विश्वविद्यालयों के प्रायः पाश्चात्त्य काल-गणना को मानने वाले अधि. कारियों को भी व्याकरण विभाग में इसे पाठ्य ग्रन्थ अथवा सहायक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करना पड़ा। यह इस ग्रन्थ के लिये विशेष गौरव की बात है। इस ग्रन्थ का तृतीय संस्करण लगभग ३-४ वर्ष पूर्व समाप्त हो गया था, परन्तु आर्थिक कठिनाइयों के कारण इस के प्रकाशन में कुछ विलम्ब हुा । सहृदय पाठकों को प्रतीक्षा करनी पड़ी । इस के लिये मैं उनसे क्षमा चाहता हूं। . इस इतिहास ग्रन्थ से पूर्व एकमात्र डा० वेल्वाल्कर का 'सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर' नामक एक लघुकाय ग्रन्थ ही अंग्रेजी में छपा था। सं० २००७ में मेरे ग्रन्थ के प्रकाशित होने के पीछे सं० २०१७ में पं० वाचस्पति गैरोला ने अपने 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' में तथा २०२६ में पं० बलदेव उपाध्याय ने 'संस्कृत-शास्त्रों का इतिहास' ग्रन्थ में व्याकरण शास्त्र का संक्षिप्त इतिहास लिखा । इन दोनों ने मेरे ग्रन्थ को ही प्रमुख आधार बनाया। यह पास्परिक तुलना से हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष है । सं० २०२८ में डा० सत्यकाम वर्मा का संस्कृत
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy