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संस्कृतव्याकरण त्र-शास्त्र का इतिहास
११. आदेन्न आदेन नाम के किसी वैयाकरण ने 'महाभाष्यप्रदीपस्फूत्ति' संजक ग्रन्थ लिखा है । इस के पिता का नाम वेङ्कट अतिरात्राप्तोर्यामयाजी है । इस ग्रन्थ के तीन हस्तलेख 'मद्रास राजकीय पुस्तकालय के सूची पत्र' भाग ३, पृष्ठ ६३२-९३४, ग्रन्थाङ्क १३०५-१३०७ पर निर्दिष्ट हैं।
प्रात्मकूर (कर्नूल-आन्ध्र) के मित्रवर श्री पं० पद्मनाभराव जी ने १०।११।६३ ई० के पत्र में लिखा है
आदेन्न प्रादीति नामैकदेशग्रहणादयम् प्रादिनारायणो वा स्याद् पादिशेषो वा व्यवहारश्चायमान्ध्रेषु सर्वथा सुलभः। अन्न, अप्प, १० अय्य, अम्म एवमादिभ्रात्रादिवाचिनशब्दा नाम्नामन्ते निवेशनमेवात्र सम्प्रदायः।
यदि पं० पद्मनाभराव का मत स्वीकार किया जाये तो यह ग्रन्थकार आन्ध्र प्रदेश का निवासी था ।
१२. सर्वेश्वर सोमयाजी १५ सर्वेश्वर सोमयाजी विरचित 'महाभाष्यप्रदीपस्फूति' का एकहस्तलेख 'अडियार पुस्तकालय के सूचीपत्र' भाग २, पृष्ठ ७३ पर निर्दिष्ट है ।
१३. हरिराम आफेक्ट ने अपने बृहत् सूचीपत्र में हरिराम कृत 'महाभाष्यप्रदीपव्याख्या' का उल्लेख किया है। हमारी दृष्टि में इसका उल्लेख अन्यत्र २० नहीं आया।
१४. अज्ञातकर्तृक 'दयानन्द एङ ग्लो वैदिक कालेज लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय' में एक 'प्रदीपव्याख्या' ग्रन्थ विद्यमान है। इसका ग्रन्थाङ्क
६६०६ है। इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम अज्ञात है । २५ इस अध्याय में कैयट-विरचित 'महाभाष्यप्रदीप' के चौदह टीका
कारों का संक्षिप्त वर्णन किया है। इस प्रकार हमने ११वें और १२ वें अध्याय में महाभाष्य और उसकी टीका-प्रटीकाओं पर लिखने
वाले वैयाकरणों का वर्णन किया है। अगले अध्याय में अनुपदकार ... और पदशेषकार नामक वैयाकरणों का उल्लेख होगा।