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शुभाशंसनम्
अमेकेषु शास्त्रेषु कृतभूरिपरिश्रमेण युधिष्ठिर-मीमांसकेन वैदिकवाङमये संस्कृतव्याकरणे च चिरकालं परिश्रमय्य ये विविधाः शोधपूर्णा ग्रन्था विरचिता सम्पादिताश्च, तैरस्य महानुभावस्य पाण्डित्यं शोधकार्यविषयकं प्रावीण्यं च पदे-पदे परिलक्ष्यते ।
अहमेतादृशस्य युधिष्ठिर-मीमांसकस्य चिरायुष्यं स्वास्थ्य साफल्यं च भगवतो विश्वनाथात् कामये, येनकाकिनानेन विदुषा निष्कारणं प्रारब्धस्य सुरभारत्या रक्षणात्मकं ज्ञान-सत्रं पूर्णतां भजेत् । संचालक
के. माधवकृष्ण-शर्मा राजस्थान संस्कृत-शिक्षा विभाग, जयपुर [वि० सं० २०२०]
संस्कृत शुभाशंसन का अभिप्राय
अनेक शास्त्रों में कृतभूरि-परिश्रम पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने वैदिक वाङ्मय और सस्कृत व्याकरणशास्त्र में चिरकाल तक परिश्रम करके जो विविध ग्रन्थ लिखे वा सम्पादित किए, उनसे इन महानुभाव का पाण्डित्य और शोधकार्य-सम्बन्धी प्रवीणता का परिचय पद-पद पर मिलता है।
मैं भगवान् विश्वनाथ से पं० युधिष्ठिर मीमांसक के चिरायुष्य, स्वास्थ्य और कार्य की सफलता की कामना करता हूं, जिससे इस प्रकार के एकाकी असहाय विद्वान् के द्वारा निष्कारण आरम्भ किया गया संस्कृत वाङ्मय की रक्षा करनेवाला ज्ञान-सत्र पूर्ण हो। संचालक
के माधवकृष्ण शर्मा. राजस्थान संस्कृत-शिक्षा विभाग, जयपुर [वि० सं० २०२०]