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________________ भूमिका (प्रथम संस्करण) भारतीय प्रार्यों का प्राचीन संस्कृत वाङमय संसार की समस्त जातियों के प्राचीन वाङमय की अपेक्षा विशाल और प्राचीनतम है। अभी तक उसका जितना अन्वेषण, सम्पादन और मुद्रण हया है, वह 'उस वाङमय का दशमांश भी नहीं है। अतः जब तक समस्त प्राचीन वाङमय का सुसम्पादन और मुद्रण नहीं हो जाता, तब तक निश्चय ही उसका अनुसन्धान कार्य अधूरा रहेगा। पाश्चात्त्य विद्वानों ने संस्कृत वाङमय का अध्ययन करके उसका इतिहास लिखने का प्रयास किया है, परन्तु वह इतिहास योरोपियन दृष्टिकोण के अनुसार लिखा गया है । उसमें यहूदी ईसाई पक्षपात, विकासवाद और आधुनिक अधूरे भाषाविज्ञान के आधार पर अनेक मिथ्या कल्पनाएं की गई हैं। भारतीय ऐतिहासिक परम्परा की न केवल उपेक्षा की है, अपितु उसे सर्वथा अविश्वास्य कहने की धृष्टता भी की है। हमारे कतिपय भारतीय विद्वानों ने भी प्राचीन भारतीय वाङमय का इतिहास लिखा है, पर वह योरोपियन विद्वानों का अन्ध-अनुकरणमात्र है । इसलिये भारतीय प्राचीन वाङमय का भारतीय ऐतिहासिक परम्परा तथा भारतीय विचारधारा से क्रमवद्ध यथार्थ इतिहास लिखने की महती आवश्यकता है। इस क्षेत्र में सव से पहला परिश्रम तीन भागों में 'वैदिक वाङमय का इतिहास' लिखकर श्री माननीय पं० भगवद्दत्तजी ने किया। उसी के एक अंश की पूर्ति के लिये हमारा यह प्रयास है। १. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् इस क्षेत्र में महती गिरावट आई है। शतशः प्राचीन मुद्रित ग्रन्थ दुष्प्राप्य हो गये हैं। नये ग्रन्थों का प्रकाशन होना तो दूर रहा, पूर्व मुद्रित ग्रन्थों के पुनः संस्करण भी नहीं हुए। २. देखो-श्री भगवद्दत्तजी कृत 'भारतवर्ष का बृहद् इतिहास' भाग १ पृष्ठ ३४-६८ तक भारतीय इतिहास की विकृति के कारण' नामक तृतीय अध्याय ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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