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________________ २७ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ८. प्रतियों में अवतरण गाथाएं प्राय: अनियमित रूप से उक्तं च या उत्तं च कहकर उद्धृत की गई है । नियम के लिये हमने सर्वत्र संस्कृत पाठ के पश्चात् उक्तं च और प्राकृत पाठ के पश्चात् उत्तं च रक्खा है। ९. प्रतियों में संधि के संबंध में भी बहुत अनियम पाया जाता है । हमनें व्याकरण के संधि संबंधी नियमों को ध्यान में रखकर यथाशक्ति मूल के अनुसार ही पाठ रखने का प्रयत्न किया है, किंतु जहां विराम चिन्ह आ गया है वहां संधि अवश्य ही तोड़ दी गई है। १०. प्रतियों में प्राकृत शब्दों के लुप्त व्यंजनों के स्थानों में कहीं य श्रुति पाई जाती है और कहीं नहीं। हमने यह नियम पालने का प्रयत्न किया है कि जहां आदर्श प्रतियों में अवशिष्ट स्वर ही हो वहां यदि संयोगी स्वर अ या आ हो तो य श्रुतिका उपयोग करना, नहीं तो य श्रुतिका उपयोग नहीं करना । प्रतियों में अधिकांश स्थानों पर इसी नियम का प्रभाव पाया जाता है । पर ओ के साथ भी बहुत स्थानों पर य श्रुति मिलती है और ऊ अथवा ए के साथ कदाचित् ही, अन्य स्वरों के साथ नहीं। (१) ओ के साथ य श्रुति के उदाहरण - - मणियों, जाणयो, विसारयो, पारयो, आदि । (२) ऊके साथ - वजियूण (३) ए के साथ-परिणयेण (परिणतेन) एक्कारसीये, आदीये, इत्यादि । षट्खंडागम के रचयिता आचार्य धरसेन - ___ प्रस्तुत ग्रंथ के अनुसार (पृ.६७) षट्खंडागम के विषय के ज्ञाता धरसेनाचार्य थे, जो सोरठ देश के गिरिनगर की चन्द्रगुफा में ध्यान करते थे। नंदिसंघ की प्राकृत पट्टावली के अनुसार वे आचारांग के पूर्ण ज्ञाता थे किन्तु 'धवला' के शब्दों में वे अंगों और पूर्वो के एक देश ज्ञाता थे। कुछ भी हो वे थे भारी विद्वान् और श्रुत-वत्सल । उन्हें इस बात की चिंता हुई कि उनके पश्चात् श्रुतज्ञान का लोप हो जायगा, अत: उन्होंने महिमा नगरी के मुनि सम्मेलन को पत्र लिखा जिसके फलस्वरूप वहां से दो मुनि उनके पास पहुंचे । आचार्य ने उनकी बुद्धि की परीक्षा करके उन्हें सिद्धान्त पढ़ाया । ये दोनों मुनि पुष्पदंत और भूतबलि थे ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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