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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४५२ अतिरिक्त जो जीव होते हैं, चाहे उन्होंने शरीर ग्रहण किया हो और चाहे शरीर ग्रहण न किया हो, वे सब प्रत्येकशरीर जीव कहलाते हैं। इस प्रकार प्रत्येकशरीरवर्गणा किन-किन जीवों के किस प्रकार होती है इसका विचार किया। . उक्त चार वर्गणाओं में दूसरी वर्गणा बादरनिगोदवर्गणा है । यह वर्गणा क्षपित कर्माशविधि से आये हुए क्षीणकषायजीव के अन्तिम समय में होती है, क्योंकि एक तो जो क्षपितकर्माश विधि से आया हुआ जीव होता है उसके कर्म और नोकर्म का संच्चय उत्तरोत्तर न्यून न्यून होता जाता है । दूसरे ऐसा नियम है कि क्षपकश्रेणि पर आरोहण करने वाले जीव के विशुद्धिवश ऐसी योग्यता उत्पन्न हो जाती है जिससे उस जीव के क्षीणकषाय गुणास्थान में पहुँचने पर उसके प्रथम समय में शरीरस्थित अनन्त बादरनिगोद उत्तरोत्तर विशेष अधिक विशेष अधिक बादरनिगोद जीव मरते हैं। उससे आगे क्षीणकषाय के काल में आवलि के असंख्यातवें भागप्रमाण काल शेष रहने तक संख्यातभाग अधिक संख्यातभाग अधिक जीव मरते हैं । उससे अगले समय में असंख्यातगुणे जीव मरते हैं । इस प्रकार क्षीणकषाय के अन्तिम समय तक असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे जीव मरते हैं। इस प्रकार क्षीणकषाय के अन्तिम समय में जो मरनेवाले निगोदजीव होते हैं उनके विस्त्रसोपचयसहित कर्मऔर नोकर्म के समुदाय को एक बादर निगोदवर्गणा कहते हैं। चूंकि यह अन्य बादर निगोदवर्गणाओं की अपेक्षा सबसे जघन्य होती है, अत: क्षपितकशि विधि से आये हुए जीव के क्षीणकषाय के अन्तिम समय में जघन्यबादर निगोदवर्गणा कही गई है। यहाँ बारहवें गुणस्थान में उस गुणस्थान वाले जीव के शरीर के सब निगोद जीवों के मरने की बात कही गई है। इसका अभिप्राय यह है कि सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जीव का शरीर एकमात्र अपने जीव को छोडकर अन्य त्रस और स्थावर निगोद जीवों से रहित हो जाता है । उनके शरीर की सात धातु और उपधातु यहाँ तक कि रोम, नख, चमड़ी और रक्त भी एक सयोगिकेवली जीव के शरीर को छोड़कर अन्य किसी जीव का आधार नहीं रहता । यहाँ बारहवें गुणस्थान में यद्यपि क्रम से निगोद राशि का अभाव बतलाया गया है, इसलिए यह प्रश्न हो सकता है कि क्षीणकषाय जीव के शरीर से निगोदराशि का अभाव होता है तो होओ, पर उसके शरीर से त्रसराशि का भी अभाव हो जाता है यह कैसे माना जा सकता है ? उत्तर यह है कि नारकी, देव, आहारकशरीरी और केवली इन चार प्रकार के त्रस जीवों के शरीरों को छोड़कर अन्य जितने त्रस जीवों के शरीर हैं वेसब बादरनिगोद प्रतिष्ठित होते हैं, ऐसा आगमवचन है । अब जब कि केवली जिनके
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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