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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४२० (५) ओज - युग्मप्ररूपणा - जहाँ विवक्षित राशि में चार का भाग देने पर १ या ३ शेष रहते हैं उसकी ओज संज्ञा है और जहाँ २ शेष रहते हैं या कुछ भी शेष नहीं रहता है उसकी युग्म संज्ञा है। इस आधार से इस प्ररूपणा में यह बतलाया गया है कि सब अनुभागस्थानों के अविभागप्रतिच्छेद तथा सब स्थानों की अन्तिम वर्गणा के अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्मरूप हैं और द्विचरम आदि वर्गणाओं के अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्मरूप ही हैं यह नियम नहीं है, क्योंकि उनमें से कोई कृत युग्मरूप, कोई बादर युग्मरूप, कोई कलि ओजरूप और कोई तेज ओजरूप उपलब्ध होते हैं । (६) षट्स्थानप्ररूपणा – पहले हम अनन्तभागवृद्धि आदि छह स्थानों का निर्देश कर आये हैं । उनमें अनन्त, असंख्यात और संख्यात पदों से कौन सी राशि ली गई है इन सब बातों का विचार इस प्ररूपणा में किया गया है । (७) अधस्तनस्थानप्ररूपणा इसमें अनन्तभागवृद्धि से लेकर प्रत्येक वृद्धि जब काण्डक प्रमाण हो लेती है तब अगली वृद्धि होती है । अनन्तगुणावृद्धि के प्राप्त होने तक यही क्रम चालू रहता है । यह बतलाकर एक षट्स्थानवृद्धि में अनन्तभागवृद्धि कितनी होती है, संख्यात भागवृद्धि कितनी होती है आदि का निरूपण किया गया है । — (८) समयप्ररूपणा जघन्य अनुभागबन्धस्थान से लेकर उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान तक जितने अनुभागबन्धस्थान होते हैं उनमें से एक समय से लेकर चार समय तक बन्ध को प्राप्त होने वाले अनुभागबन्धस्थान असंख्यातलोक प्रमाण हैं । पाँच समय बँधनेवाले अनुभागबन्धस्थान भी असंख्यात लोकप्रमाण हैं । इस प्रकार चार समय से लेकर आठ समय तक बँधनेवाले अनुभाग बन्धस्थान और पुन: सात समय से लेकर दो समय तक बँधने वाले अनुभागबन्धस्थान प्रत्येक असंख्यात लोकप्रमाण हैं । यह बतलाना समयप्ररूपणा का कार्य है । साथ ही यद्यपि ये सब स्थान असंख्यातलोकप्रमाण हैं फिर भी सबसे थोड़े कौन अनरुभागबन्धस्थान हैं और उनसे आगे उत्तरोत्तर वे कितने गुण हैं यह बतलाना भी इस प्ररूपणा का कार्य है । ( ९ ) वृद्धिप्ररूपणा - इस प्ररूपणा में पहले अनन्तभागवृद्धि आदि छह वृद्धियों IT व अनन्तभागहानि आदि छह हानियों का अस्तित्व स्वीकार करके उनके काल का निर्देश किया गया है । (१०) यवमध्यप्ररूपणा समय प्ररूपणा में छह वृद्धियों और छह हानियों का किसका कितना काल है यह बतला आये हैं । तथा वहाँ उनके अल्पबहुत्व का भी ज्ञान करा -
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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