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विषय-परिचय (पु.१२) वेदना अनुयोगद्वार के मुख्य अधिकार सोलह हैं। उनमें से जिन अन्तिम दस अधिकारों की इस पुस्तक में प्ररूपणा की है । उनके नाम ये हैं - वेदनाभावविधान, वेदनाप्रत्ययविधान, वेदनास्वामित्व विधान, वेदनावेदनाविधान, वेदनागतिविधान, वेदनाअनन्तरविधान, वेदनासन्निकर्षविधान, वेदनापरिमाणविधान, वेदनाभागाभागविधान
और वेदनाअल्पबहुत्वविधान। ७ वेदनाभावविधान
भाव के चार भेद हैं - नामभाव, स्थापनाभाव, द्रव्यभाव और भावभाव । उनमें से भाव शब्द नामभाव है तथा सद्भाव या असद्भाव रूप से 'वह यह है' इस प्रकार अभेद रूप से सङ्कल्पित पदार्थ स्थापनाभाव है । द्रव्यभाव के दो भेद हैं - आगमद्रव्यभाव और नोआगमद्रव्यभाव । भावविषयक शास्त्र का जानकार किन्तु वर्तमान में उसके उपयोग से रहित जीव आगमद्रव्यभाव है । नोआगमद्रव्यभाव तीन प्रकार का है - ज्ञायकशरीर, भावी
और तद्वयतिरिक्त । जो भावविषयक शास्त्र के जानकार का त्रिकालविषयक शरीर है वह ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यभाव है और जो भविष्य में भावविषयक शास्त्र का जानकार होगा वह भाविनोआगमद्रव्यभाव है और जो भविष्य में भावविषयक शास्त्र का जानकार होगा वह भाविनोआगमद्रव्यभाव है। तद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यभाव के दो भेद हैं - कर्म और नोकर्म। ज्ञानावरणादि कर्मों की अज्ञानादि को उत्पन्न कराने वाली जो शक्ति है उसे कर्मतद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव कहते हैं और इसके सिवा अन्य जितनी सचित्त और अचित्तद्रव्य सम्बन्धी शक्तियाँ हैं उन्हें नोकर्मतद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव कहते हैं। भावभाव के दो भेद हैं - आगमभावभाव और नोआगमभावभाव । भावविषयक शास्त्र का जानकार और उपयोगयुक्त जीव आगमभावभाव कहलाता है तथा नोआगम भावभाव के दो भेद हैं - तीव्रमन्दभाव और निर्जराभाव।
इन सब भावों में से वेदनाभावविधान में कर्मतद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव की पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व इन तीन अधिकारों द्वारा प्ररूपणा की गई है।
पदमीमांसा में ज्ञानावरणादि आठ मूल कर्मों की उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य भाववेदनाओं का विचार किया गया है। यहाँ वीरसेन स्वामी ने धवला टीका में