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विषय-परिचय (पु.१०) अग्रायणीय पूर्वकी पंचम वस्तु चयनलब्धि के अन्तर्गत २० प्राभृतों में चतुर्थ प्राभृत का नाम 'कर्मप्रकृति' है । इसमें कृति व वेदना आदि २४ अनुयोगद्वार हैं । इनमें से कृति व वेदना नामक २ अनुयोगद्वार षट्खण्डागम के 'वेदना' नाम से प्रसिद्ध इस चतुर्थ खण्ड में वर्णित हैं। उनमें कृति अनुयोगद्वार की प्ररूपणा पूर्व प्रकाशित पुस्तक ९ में विस्तारपूर्वक की जा चुकी है । वेदना महाधिकार के अन्तर्गत निम्न १६ अनुयोगद्वार हैं - (१) वेदनानिक्षेप (२) वेदनानयविभाषणता (३) वेदना नामविधान (४) वेदनाद्रव्यविधान (५) वेदनाक्षेत्रविधान (६) वेदनाकालविधान (७) वेदनाभावविधान (८) वेदनाप्रत्ययविधान (९) वेदनास्वाभित्वविधान (१०) वेदना-वेदनाविधान (११) वेदनागतिविधान (१२) वेदनाअन्तरविधान (१३) वेदनासंनिकर्षविधान (१४) वेदनापरिमाण विधान (१५) वेदनाभागाभागाविधान और (१६) वेदनाअल्पबहुत्व । प्रस्तुत पुस्तक में इनमें से आदि के चार अनुयोगद्वार प्रगट किये जा रहे हैं। १. वेदनानिक्षेप
इस अनुयोगद्वार में वेदना को नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना; इन चार भेदों में निक्षिप्त किया गया है । बाह्म अर्थ का अवलम्बन न करके अपने आप में प्रवृत्त 'वेदना' शब्द को नामवेदना कहा गया है । वह वेदना यह है' इस प्रकार अभेदपूर्वक वेदना स्वरूप से व्यवहृत पदार्थ स्थापनावेदना कहा जाता है। वह सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापना के भेद से दो प्रकार हैं । वेदना का अनुसरण करने वाले पदार्थ में वेदना के आरोप को सद्भावस्थापना और उसका अनुसरण न करनेवाले पदार्थ में उक्त वेदना के आरोप को असद्भावस्थापना बतलाया है।
द्रव्यवेदना के आगमद्रव्यवेदना और नोआगमद्रव्यवेदना ये दो भेद किये गये हैं। इनमें से नोआगमद्रव्यवेदना के ज्ञायकशरीर, भांवी और तव्यतिरिक्त इन तीन भेदों के अन्तर्गत ज्ञायक शरीर के भी भाव, वर्तमान और समुध्यात (त्यक्त) ये तीन भेद बतलाये हैं। तव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यवेदना के कर्म व नोकर्म रूप दो भेदों में से कर्मवेदना ज्ञानावरणादिके भेद से आठ प्रकार की और नोकर्मवेदना सचित्त, अचित्त एवं मिश्र के भेद से तीन प्रकार की बतलाई गई है। इनमें सिद्ध जीवद्रव्य को सचित्त द्रव्यवेदना; पुद्गल, काल, आकाश, धर्म व अधर्म द्रव्यों को अचित्त द्रव्यवेदना; पुद्गल, काल, आकाश, धर्म व अधर्म द्रव्यों की अचित्त द्रव्यवेदना; तथा संसारी जीवद्रव्य को मिश्रवेदना कहा गया है।