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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ३९८ टीकाकार ने इस मंगलदण्डक को देशामर्शक मानकर निमित्त, हेतु, परिमाण व नाम का भी निर्देश कर द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की अपेक्षा कर्ता का विस्तृत वर्णन किया है, जो जीव स्थान के व विशेषकर जयधवला (कषायप्राभृत) के प्रारम्भिक कथन के ही समान सूत्र ४५ में बतलाया है कि अग्रायणीय पूर्व की पंचम वस्तु के चतुर्थ प्राभृत का नाम कम्मपर्यायप्रकृति है । उसमें कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति आदि २४ अनुयोगद्वार हैं । इनमें प्रथम कृतिअनुयोगद्वार प्रकृत है । इस सूत्र की टीका करते हुए वीरसेन स्वामी ने उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नयकी उसी प्रकार पुन: विस्तारपूर्वक प्ररूपणा की है जैसे कि जीवस्थान के प्रारम्भ में एक बार की जा चुकी है। ___सूत्र ४६ में नामकृति, स्थापनाकृति, द्रव्यकृति, गणनकृति, ग्रन्थकृति, करणकृति और भावकृति, ये कृति के सात भेद बतलाये हैं। इनकी संक्षिप्त प्ररूपणा इस प्रकार है -- १. एक व अनेक जीव एवं अजीव में से किसी का 'कृति' ऐसा नाम रखना नामकृति है। २. काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोत्तकर्म, लेप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, भित्तिकर्म, दन्तकर्म व मेंडकर्म में सद्भाव स्थापना रूप तथा अक्ष एवं बराटक आदि में असद्भावस्थापना रूप 'यह कृति है' ऐसा अभेदात्मक आरोप करना स्थापनाकृति कहलाती ३. द्रव्यकृति आगम और नोआगम के भेद से दो प्रकार हैं। इनमें आगमद्रव्यकृति के स्थिति, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम, ये नौ अधिकार हैं। यहां वाचनोपगत अधिकार की प्ररूपणा में व्याख्याताओं एवं श्रोताओं को द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव रूप शुद्धि करने का विधान बतलाया गया है । आगे चलकर स्थित व जित आदि उपर्युक्त नौ अधिकारों विषयक वाचना, पृच्छना, प्रतीच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति व धर्मकथा आदि रूप उपयोगों की प्ररूपणा है । नोआगमद्रव्यकृति ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार है। इनमें से ज्ञायकशरीरनोआगमद्रव्यकृति के भी आगमद्रव्यकृति के ही समान स्थित जित आदि उपर्युक्त नौ अधिकार कहे गये हैं। कृतिप्राभृत के जानकार जीव का च्युत, च्यावित एवं त्यक्त शरीर ज्ञायक शरीरद्रव्यकृति कहा गया है । जो जीव भविष्यत् काल में
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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