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________________ षखंडागम की शास्त्रीय भूमिका वहाँ श्री लाला जम्बूप्रसादजी रईस ने उन्हें यथोचित पुरस्कार देकर उन प्रतियों को अपने मंदिर में विराजमान कर दिया। गजपति उपाध्याय ने लाला जी को यह आश्वासन दिया था कि वे स्वयं उन कनाडी प्रतियों की नागरी लिपि कर देंगें। किंतु पुत्र की बीमारी के कारण उन्हें शीघ्र घर लौटना पड़ा । पश्चात् उनकी पत्नी भी बीमार हुई और उनका देहान्त हो गया। इन संकटों के कारण उपाध्याय जी फिर सहारनपुर न जा सके और सन् १९२३ में उनका भी शरीरान्त हो गया । लालाजी ने उन ग्रंथों की नागरी प्रतिलिपि पण्डित विजयचंद्रय्या और पं. सीताराम शास्त्री के द्वारा कराई । यह कार्य सन् १९१६ से १९२३ तक संपन्न हुआ । सन् १९२४ में सहारनपुर वालों ने मूडविद्री के पं. लोकनाथजी शास्त्री को बुलाकर उनसे कनाडी और नागरी लिपियों का मिलान करा लिया । __ सहारनपुर की कनाडी प्रति की नागरी लिपि करते समय पं. सीताराम शास्त्री ने एक और कापी कर ली और उसे अपने ही पास रख लिया, यह लाला प्रद्युम्नकुमारजी रईस, सहारनुपर, की सूचना से ज्ञात हुआ है । पर यह भी सुना जाता है कि जिस समय पं. विजयचंद्रय्या और पं. सीताराम शास्त्री कनाडी की नागरी प्रतिलिपि करने बैठे उस समय पं. विजयचंद्रय्या पढ़ते जाते थे और पं. सीताराम शास्त्री सुविधा और जल्दी के लिये कागज के खरों पर नागरी में लिखते जाते थे। इन्हीं खरों से उन्होंने पीछे शास्त्राकार प्रति सावधानी से लिखकर लालाजी को दे दी, किंतु उन खरों को अपने पास ही रख लिया, और उन्हीं खरों पर से पीछे सीताराम शास्त्री ने अनेक स्थानों पर धवल-जयधवल की लिपियां करके दीं। वे ही तथा उन पर से की गई प्रतियां अब अमरावती, आरा, कारंजा, दिल्ली, बम्बई, सोलापुर, सागर, झालरापाटन, इन्दौर, सिवनी, व्यावर और अजमेर में विराजमान हैं। पं. गजपति उपाध्याय तथा पं. सीताराम शास्त्री ने चाहे जिस भावना से उक्त कार्य किया हो और भले ही नीति की कसौटी पर वह कार्य ठीक न उतरता हो, किंतु इन महान् सिद्धांत ग्रंथों की सैकड़ों वर्षों के कैद से मुक्त करके विद्वत् और जिज्ञासु संसार का महान् उपकार करने का श्रेय भी उन्हीं को हैं। इस प्रसंग में मुझे गुमानी कवि का निम्न पद्य याद आता है - पूर्वजशुद्धिमिषाद् भुवि गंगां प्रापितवान् स भगीरथभूपः । बन्धुरभूजगतः परमोऽसौ सजन है सबका उपकारी ॥
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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