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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ३. अल्पबहुत्वानुगम ३४४ द्रव्यप्रमाणानुगम में बतलाये गये संख्या प्रमाण के आधार पर गुणस्थानों और मार्गणा स्थानों में संभव पारस्परिक संख्याकृत हीनता और अधिकता का निर्णय करने वाला अल्पबहुत्वानुगम नामक अनुयोगद्धार है । यद्यपि व्युत्पन्न पाठक द्रव्यप्रमाणानुगम अनुयोगद्वार के द्वारा ही उक्त अल्पबहुत्व का निर्णय कर सकते हैं, पर आचार्य ने विस्ताररुचि शिष्यों के लाभार्थ इस नाम का एक पृथक ही अनुयोगद्वार बनाया, क्योंकि, संक्षेपरुचि शिष्यों की जिज्ञासा को तृप्त करना ही शास्त्र - प्रणयन का फल बतलाया गया है । - अन्य प्ररूपणाओं के समान यहां भी ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश की अपेक्षा अल्पबहुत्व का निर्णय किया गया है। ओघनिर्देश से अपूर्वकरण आदि तीनगुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा परस्पर तुल्य हैं, तथा शेष सब गुणस्थानों के प्रमाण से अल्प हैं, क्योंकि, इन तीनों ही गुणस्थानों में पृथक्-पृथक् रूप से प्रवेश करने वाले जीव एक दो को आदि लेकर अधिक से अधिक चौपन तक ही पाये जाते हैं। इतने कम जीव इन तीनों उपशामक गुणस्थानों को छोड़कर और किसी गुणस्थान में नहीं पाये जाते हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्यस्थ जीव भी पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं, क्योंकि, उक्त उपशामक जीव ही प्रवेश करते हुए इस ग्यारहवें गुणस्थान में आते हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्यस्थों से अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, उपशामक एक गुणस्थान में उत्कर्ष से प्रवेश करने वाले चौपन जीवों की अपेक्षा क्षपक के एक गुणस्थान में उत्कर्ष से प्रवेश करने वाले एक सौ आठ जीवों के दूने प्रमाणस्वरूप संख्यातगुणितता पाई जाती है । क्षीणकषायवीतरागछद्यस्थ जीवपूर्वोक्त प्रमाण ही हैं, क्योंकि, उक्त क्षपक वही इस बारहवें गुणस्थान में प्रवेश करते हैं । सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जिन प्रवेश की अपेक्षा दोनों ही परस्पर तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण अर्थात् एक सौ आठ हैं । किन्तु सयोगिकेवली जिन संचयकाल की अपेक्षा प्रविश्यमान जीवों से संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, पांच सौ अट्ठानवे मात्र जीवोंकी अपेक्षा आठ लाख अट्ठानवें हजार पांच सौ दो (८९८५०२) . संख्याप्रमाण जीवों के संख्यातगुणितता पाई जाती है। दूसरी बात यह है कि इस तेरहवें गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष से कम पूर्व कोटी वर्ष माना गया है। सयोगिकेवली जिनों से उपशम और क्षपकश्रेणी पर नहीं चढ़नेवाले अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, अप्रमत्तसंयत्तों का प्रमाण दो करोड़ छयानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन (२९६९९१०३ ) है । अप्रमत्तसंयत्तों प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं, क्योंकि,
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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