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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २९५ बड़ी संख्यायें - यह सुविदित है कि जैन साहित्य में बड़ी संख्यायें बहुतायत से उपयोग में आई हैं | धवला में भी अनेक तरह की जीवराशियों (द्रव्यप्रमाण) आदि पर तर्क वितर्क है। निश्चित रूप से लिखी गई सबसे बड़ी संख्या पर्याप्त मनुष्यों की है । यह संख्या धवला में दो के छठे वर्ग और दो के सातवें वर्ग के बीच की, अथवा और भी निश्चित, कोटि-कोटि-कोटि और कोटि-कोटि-कोटि-कोटि के बीच की कही गई हैं । याने - २१ और २१७ के बीच की । अथवा, और अधिक नियम - ( १,००,००,०००) ३ और (१,००,००,०००) ४ के बीच की । अथवा, सर्वथा निश्चित - २२' x २ । इन जीवों की संख्या अन्य मतानुसार ' ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ है । यह संख्या उन्तीस अंक ग्रहण करती है। इसमें भी उतने ही स्थान हैं जितने कि (१,००,००,०००) ४ में, परन्तु है वह उससे बड़ी संख्या । यह बात धवलाकार को ज्ञात है, और उन्होंने मनुष्यक्षेत्र का क्षेत्रफल निकालकर यह सिद्ध किया है कि उक्त संख्या के मनुष्य मनुष्य क्षेत्र में नहीं समा सकते, और इसलिये उस संख्यावाला मत ठीक नहीं है। मौलिक प्रक्रियायें धवला में जोड़, बाकी, गुणा, भाग, वर्गमूल और धनमूल निकालना, तथा संख्याओं का घात निकालना (The raising of numbers to given powers) आदि मौलिक प्रक्रियाओं का कथन उपलब्ध है । ये क्रियाएं पूर्णक और भिन्न, दोनों के संबंध में कही गई हैं | धवला में वर्णित घातांक का सिद्धांत (Theory of indices) दूसरे गणित ग्रंथों से कुछ-कुछ भिन्न है । निश्चयत: यह सिद्धान्त प्राथमिक है, और सन् ५०० से पूर्व का है। इस सिद्धान्त संबंधी मौलिक विचार निम्नलिखित प्रक्रियाओं के आधार पर प्रतीत होते हैं :(१) वर्ग, (२) घन, (३) उत्तरोत्तर वर्ग, (४) उत्तरोत्तर घन, (५) किसी संख्या का संख्यातुल्य धातु निकालना (६) वर्गमूल, (७) घनमूल, (८) उत्तरोत्तर वर्गमूल, (९) उत्तरोत्तर घनमूल, आदि । अन्य सब घातांक इन्हीं रूपों से प्रगट किये गये हैं । उदाहरणार्थ अको अ के घन का प्रथम वर्गमूल कहा है । अ' को अका घन का घन कहा है । अ ६ को अ के घन का वर्ग, या वर्ग का घन कहा है, इत्यादि ३ । उत्तरोत्तर वर्ग और घनमूल नीचे लिखे 'अनुसार हैं. - २ गोम्मटसार, जीवकांड, (से. बु. जै. सीरीज) पृ. १०४ १ ध. भाग ३, पृ. २५३. ३ धवला, भाग ३ पृ. ५३
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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