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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २७५ +८ पर यदि हम सड को दो भाग अधिक अर्थात् स डेवढ़ा (२४ खंड प्रमाण) कर दें, तो उसी वर्ग राशि प्रमाण क्षेत्रफल को नियत रखने के लिये हमें सड' को त्रिभागहीन अर्थात् १०३ खंडप्रमाण कर लेना पड़ेगा, जो जीवराशि का त्रिभागहीन (१६ - १६) भाग है । यही आचार्य द्वारा समझाये गये और चित्र द्वारा दिखाये गये सिद्धान्त का अभिप्राय है । पुस्तक ३, पृ. २७८-२७९ १५. शंका - यहां जो नारकी व स्वर्गवासियों की राशियां लाने के लिये विषकंभसूचियां व अवहारकाल बतलाये गये हैं वे खुद्दाबंध और जीवट्ठाण में न्यूनाधिक क्यों कहे गये हैं ? उनमें समानता मानने में क्या दोष आता है, सो समझ नहीं पड़ता । स्पष्ट कीजिये ? (नेमीचंद जी, वकील, सहारनपुर, पत्र २४.११.४१) समाधान - खुद्दाबंध में जो नारकी व देवों का प्रमाण लाने के लिये विष्कंभसूचियां व अवहारकाल कहे गये हैं वे उन-उन जीवराशियों में गुणस्थान का भेद न करके सामान्यराशि के लिये उपयुक्त होते हैं। किन्तु यहां जीवस्थान में गुणस्थान की विवक्षा है, और प्रस्तुत में अन्य गुणस्थानों को छोड़कर केवल मिथ्यादृष्टियों का प्रमाण कहा जा रहा है जो सामान्यराशि से कुछ न्यून होगा ही । अत: इस न्यून राशि को बतलाने के लिये जीवट्ठाण में उसकी
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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