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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
___ सूत्र से सूत्र तक कुल सूत्र | सूत्र से सूत्र तक कुल सूत्र नरकगति १५ - २३ = ९ | ज्ञान मार्गणा १४१ - १४७ तिर्यचगति २४ - ३९ : १६ । संयम मार्गणा १४८ - १५४ मनुष्य गति ४० - ५२ दर्शन मार्गणा १५५ - १६१ : देवगति ५३ - ७३ : २१ । लेश्या मार्गणा १६२ - १७१ - १० इंद्रिय मार्गणा७४ - ८६ भव्य मार्गणा १७१ - १७३ - २ काय कार्गणा ८७ - १०२ सम्यक्त्व मार्गणा १७४ - १८४ : ११ योग मार्गणा १०३ - १२३ संज्ञी मार्गणा १८५ - १८९ : ५ वेद मार्गणा १२४ - १३४ : ११ । आहार मार्गणा १९० - १९२ : ३ कषाय मार्गणा १३५ - १४० - ६
मतान्तर और उनका खंडन
धवलाकार ने अपने समय की उपलब्ध सैद्धान्तिक सम्पत्ति का जितना भरपूर उपयोग किया है वह ग्रंथ के अवलोकन से ही पूर्णत: ज्ञात हो सकता है। सूत्रों, व्याख्यानों
और उपदेशों का जो साहित्य उनके सन्मुख उपस्थित था, उसका सिंहावलोकन के पूर्वभाग में की भूमिका में कराया जा चुका है । प्रस्तुत ग्रंथभाग में भी जहां प्रकृत विषय के विशेष प्रतिपादन के लिये धवलाकार को सूत्र, सूत्रयुक्ति व व्याख्यान का आधार नहीं मिला, वहां उन्होंने 'आचार्य परंपरागत जिनोपदेश' 'परम गुरूपदेश,' 'गुरूपदेश', व 'आचार्य-वचन' के आश्रय से प्रमाणप्ररूपण किया है । । किन्तु विशेष ध्यान देने योग्य कुछ ऐसे स्थल हैं, जहां आचार्य ने भिन्न-भिन्न मतों का स्पष्ट उल्लेख करके एकका खंडन और दूसरे का मंडन किया है । यहां हम इसी प्रकार के मत-मतान्तरों का कुछ परिचय कराते हैं -
(१) सूत्रकार ने प्रमाणप्ररूपणा में प्रथम द्रव्यप्रमाण, फिर कालप्रमाण और तत्पश्चात् क्षेत्रप्रमाण का निर्देश किया है । सामान्य क्रमानुसार क्षेत्र पहले और काल पश्चात् उल्लिखित किया जाता है, फिर यहां काल का क्षेत्र से पूर्व निर्देश क्यों किया गया ? इसका
१ परमगुरुवदेसादो जाणिज्जदे। ...... इदमेत्तियं होदि त्ति कधं णव्वदे ? आइरियपरंपरागदजिणोवदेसादो।
... अप्पमत्तसंजदाणं पमाणं गुरूवदेसादो वुच्चदे। (पृ.८९) और भी देखिये पृ. १११, ३५१, ४०६, ४७१.