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________________ २३१ on षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका में असंख्यात हैं, ' तथा शेष प्रमत्तादि नौ गुणस्थानों के जीव संख्या हैं जिनकी कुल संख्या तीन कम नौ करोड़ निश्चित है । यद्यपि अनन्त को संख्या में उतारना भ्रामक हो सकता है, तथापि धवलाकार ने उक्त राशियों के क्रमिक प्रमाण का बोध कराने के लिये सर्व जीवराशि को१६ और इनमें से मिथ्यादृष्टिराशि को १३, तथा सासादनादि तेरह गुणस्थानों के जीवों और सिद्धों का संयुक्त प्रमाण ३ अंकों के द्वारा सूचित किया है। अब हम यदि इसी अंकसंदृष्टि के आधार से सभी गुणस्थानों व सिद्धों का अलग-अलग प्रमाण कल्पित करना चाहें, तो स्थूलत: इस प्रकार किया जा सकता है - चौदह गुणस्थानों में जीवराशियों के प्रमाण की संदृष्टि गुणस्थान प्रमाण अंकसंदृष्टि १. मिथ्यादृष्टि अनन्त २. सासादन असंख्य ३. मिश्र असंख्य ४. अविरतसम्यग्दृष्टि असंख्य ५. संयतासंयत असंख्य ६. प्रमत्तविरत ५९३९८२०६ ७. अप्रमत्तविरत २९६९९१०३ | ८. अपूर्वकरण ८९७ ९. अनिवृत्तिकरण १०. सूक्ष्मसाम्पराय ११. उपशान्तमोह १२. क्षीणमोह ५९८ १३. सयोगिकेवली ८९८५०२ १४. अयोगिकेवली ५९८ सिद्ध अनन्त सर्वजीवराशि १ सासादन से संयतासंयत तक चारों गुणस्थानों के जीव समुच्चय व पृथक् पृथक रूप से भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। इनमें भी असंयतसम्यग्दृष्टि सबसे अधिक, इनके असंख्यातवें भाग मिश्रगुणस्थानीय, इनके संख्यातवें भाग सासादनगुणस्थानीय तथा इनके असंख्यातवें भाग संयतासंयत जीव हैं। me • ८९७ ८९९९९९९७ अनन्त
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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