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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १८६ ९. वंजण १० दंसणमोहणीयस्स उवसामणा (समत्त) ११. दंसणमोहणीयस्स खवणा (समत्त) १२. देसविरिदी १३. चरित्तमोहणीयस्स उवसामणा (संजम) १४. चरित्तमोहणीयस्स खबणा (संजम) १५. अद्धापरिमाणणिद्देस इस प्राभृत के आगे पीछे का इतिहास संक्षेप में धवलाकार ने इस प्रकार दिया है - 'एसो अत्थो विउलगिरिमत्थयत्थेण पच्वक्खीकय-तिकालगोयरछद्दव्वेण बड्डमाणभडारएण गोदमथेरस्स कहिदो । पुणो सो अत्थो आइरियपरंपराए आगंतूण गुणहरभडारथं संपत्तो । पुणो तत्तो आइरियपरंपराए आगंतूण अजमखु-नागहत्थीणं भडारयाणं मूलं पत्तो। पुणो तेहि दोहि वि कमेण जदिवसहभडारयस्स वक्खाणिदो । तेण वि ... सिस्साणुग्गहई चुण्णिसुत्ते लिहिदो'। अर्थात् इस कसायपाहुड का मूल विषय वर्धमान स्वामी ने विपुलाचलपर गौतम गणधर को कहा । वही आचार्य-परंपरा से गुणधर भट्टारक को प्राप्त हुआ । उनसे आचार्यपरंपरा द्वारा वही आर्यमंखु और नागहस्ती आचार्यों के पास आया, जिन्होंने क्रम से यतिवृषम भट्टारक को उसका व्याख्यान किया । यतिवृषभ ने फिर उस पर चूर्णिसूत्र रचे । __ गुणधराचार्यकृत गाथारूप कसायपाहुड और यतिवृषभकृत चूर्णिसूत्र वीरसेन और जिनसेनाचार्यकृत जयधवला में ग्रथित हैं जिसका परिमाण ६० हजार श्लोक है । इस टीका में आर्यमंखु और नागहत्थि के अलग-अलग व्याख्यान के तथा उच्चारणाचार्यकृत वृत्तिसूत्र के भी अनेक उल्लेख पाये जाते हैं । यतिवृषभ के चूर्णिसूत्रों की संख्या छह हजार और वृत्तिसूत्रों की बारह हजार बताई जाती है। __ नंदी सूत्र में पूर्वो के प्रभेदों में पाहुडों और पाहुडिकाओं का भी निम्नप्रकार उल्लेख है, किन्तु उनका विशेष परिचय कुछ नहीं पाया जाता - _ 'से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे एगे सुअक्खंधे चोद्दस पुन्वाई, संखेज्जा वत्थू, संखेजा चूलवत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेजा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडिआओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहुडिआओ संखेज्जाइं एवसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा अणंता पज्जवा' आदि।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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