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________________ १२१ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ___. शुभचन्द्रदेव देशीगण के थे और उनकी गुरुपरंपरा में उनसे पूर्व कुन्दकुन्द, गृद्धपिच्छ, बलाकपिच्छ, गुणनन्दि, देवेन्द्र वसुनन्दि, रविचन्द्र, दामनन्दि, वीरनन्दि, श्रीधरदेव, मलधारिदेव, (नेमि) चन्द्रकीर्ति और दिवाकरनन्दि आचार्य हुए। । ३. पुस्तक-समर्पण कार्य मंडलिनाड्ड के भुजबलगंगपेर्माडिदेवकी काकी देमियक्कने श्रुतपंचमी व्रत के उद्यापन के समय किया था। शुभचन्द्रदेव उक्त गुरुपरंपरा पर से उनका पता लगाना सुलभ हो गया । उक्त परम्परा, एक दो नामों के कुछ भेद के साथ प्राय: वहीं है, जो श्रवणबल्गुल के शिलालेख नं. ४३ (११७) में पाई जाती है। यही नहीं, किन्तु धवला की प्रशस्ति के तीन पद्य ज्यों के त्यों उक्त शिलालेख में भी पाये जाते हैं । (पद्य नं. १२, १३ और २१) । लेख में शुभचन्द्रदेव के स्वर्गवास का समय निम्न प्रकार दिया गया है - वाणाम्भोधिनभश्शशांकतुलिते जाते शकाब्दे ततो वर्षे शोभकृताहये व्युपनते मासे पुनः श्रावणे। पक्षे कृष्णविपक्षवर्त्तिनि सिते वारे दशम्यां तिथौ स्वर्यात: शुभचन्द्रदेवगणभृत् सिद्धांतवारांनिथिः॥ अर्थात् शुभचन्द्रदेव का स्वर्गवास शक संवत् १०४५ श्रावण शुक्ल १० दिन सिंतवार (शुक्रवार) को हुआ। उनकी निषद्या पोय्सल-नरेश विष्णुवर्धन के मंत्री गंगराज ने निर्माण कराई थी। शिमोग से मिले हुए एक दूसरे शिलालेख में बन्नियकेरे चैत्यालय के निर्माण का समय शक सं. १०३५ दिया हुआ है और उसमें मन्दिर के लिये भुजबलगंगपेर्माडिदेवद्वारा दिये गये दान का भी उल्लेख है । अन्त में देशीगण के शुभचंद्रदेव की प्रशंसा भी की गई है। (एपीग्राफि आ कर्नाटिका, जिल्द ८, लेख नं. ९७) खोज करने से धवला प्रति का दान करने वालीश्राविका देमियक्कका पता भी श्रवणबेल्गुल के शिलालेखों से चल जाता है । लेख नं. ४६ में शुभचन्द्र मुनि की जयकार के पश्चात् नागले माता की सन्तति दंडनायकित्ति लक्कले, देमति और बूचिराज का उल्लेख है और बूचिराज की प्रशंसा के पश्चात् कहा गया है कि वे शक १०३७ बैशाख सुदि १० आदित्यवार को सर्व परिग्रह त्याग पूर्वक स्वर्गवासी हुए और उन्हीं की स्मृति में सेनापति गंगने पाषाण स्तम्भ आरोपित कराया । लेख के अन्त में 'मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छ के
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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