________________
पास एक सरोवर से इसे प्राप्त किया गया था और आचार्य श्रीउदयसूरि के करकमलों से इसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी।
यहाँ के जो प्रगट प्रभावी अधिष्ठायक देव श्री भैरवजी महाराज हैं, उनकी स्थापना सं. १५११ में आचार्य कीर्तिरत्नसूरि द्वारा की गई थी। नाकोड़ा भैरव की स्थापना के बाद तीर्थ की निरंतर समृद्धि होती रही । यहाँ के चमत्कार जनमानस में घर करते गये। देश-देशान्तर से श्रद्धालु आते रहे । समय-समय पर तीर्थ का नव-निर्माण और जीर्णोद्धार भी होता रहा है।
सतरहवीं शताब्दी तक तीर्थ पर जैनों की विपुल जनसंख्या रही, किन्तु बाद में यहाँ के निवासी नाकोड़ा के समीपवर्ती अन्य गाँवों तथा नगरों में जाकर बस गये।
भारत के कोने-कोने से प्रतिदिन सैंकड़ों-हजारों यात्रियों का यहाँ पहुँचना, अपने व्यवसाय तक में नाकोड़ा भैरव के नाम से भागीदारी रखना भैरव देव के प्रति अनन्य श्रद्धा का परिचायक है । पौष कृष्णा दशमी, जो भगवान पार्श्वनाथ की जन्म-तिथि है, को यहाँ विराट मेला आयोजित होता है।
मूल मंदिर के आस-पास छोटे-बड़े कई अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर के दायीं ओर साँवलिया पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है । इस कक्ष में माँ सरस्वती, दादा जिनदत्त सूरि, आचार्य कीर्तिरत्नसूरि आदि की प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठित हैं । मूल मंदिर के पृष्ठ भाग में भगवान आदिनाथ का भव्य मंदिर है। इस मंदिर का परिकर अत्यन्त कलात्मक है।
मूल मंदिर के बाहर दायीं ओर श्री शांतिनाथ भगवान का भव्य मंदिर निर्मित है, जहाँ भगवान श्री पार्श्वनाथ एवं शांतिनाथ के पूर्वभव संगमरमर पर उत्कीर्ण हैं । मूल मंदिर के बाहर भगवान श्री नेमिनाथ की दो प्राचीन प्रतिमाएँ ध्यानस्थ मुद्रा में खड़ी हैं। प्रतिमा की सौम्य मुखाकृति को देखकर मन मंत्र-मुग्ध हो जाता है । इसी मंदिर में दादा जिनदत्त सूरि की प्राचीन चरण-पादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के पृष्ठ भाग में छोटा, पर
खूबसूरत सिद्धचक्र मंदिर है। यात्रियों की सुविधा के लिए विशाल धर्मशालाएँ हैं, जहाँ हजारों यात्री एकमुश्त ठहर सकते हैं । विशाल भोजनशाला के अतिरिक्त तीर्थ के परिसर के बाहर महावीर कला मंदिर दर्शकों का मन मोहता है, जहाँ भगवान् महावीर के जीवन से सम्बन्धित प्रेरणादायी एवं नयनाभिराम भव्य चित्रों का आकलन हुआ है । यहाँ का 'मंगल कलश स्तम्भ' एवं 'दादावाड़ी' भी दर्शनीय है। हाल ही यहाँ करोड़ों की लागत
जिनसूत्र/७७