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________________ संपादकीय - श्री गणेश वर्णी संस्थान, वाराणसी द्वारा "तीर्थंकर पार्श्वनाथ" पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी करने का निर्णय 1995 में ही ले लिया गया था और इसके कई कारण भी थे। संस्थान अपनी रजत जयन्ती में प्रवेश करने वाला था। साथ ही तीर्थंकर पार्श्वनाथ का काशी नगरी में जन्म होने के कारण काशी स्थित इस शोध संस्थान द्वारा पार्श्वनाथ पर विशेष शोध एवं विचार विमर्श किया जाना उचित भी था। इस कार्य को मूर्त रूप प्राप्त हुआ, इस युग के दिगंबर संत उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी के आशीर्वाद से। _____ तीर्थंकर पार्श्वनाथ एक बहुआयामी तथा अत्यंत लोकप्रिय व्यक्तित्व के स्वामी हुये, इसमें कोई संदेह नहीं। जनप्रिय होने के कारण समय के साथ-साथ उनके साथ अनेकानेक घटनाओं का जोड़ा जाना तथा उनके विषय में अनेकानेक ग्रंथ एवं काव्यों की रचना होना स्वाभाविक ही था। इन सबके अध्ययन से इनमें प्रवाहित अन्तर धाराओं की एकरूपता सामने आती है तथा पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता को संपुष्ट करती है। थोड़ा मतैक्य उनके जन्म-निर्वाण काल को लेकर अवश्य आता है जिसकी विशेष चर्चा अनेक विद्वानों ने अपने आलेखों में की है। ... इस संगोष्ठी की अनेक विशेषतायें रहीं। एक अनुपम तीर्थंकर के सभी पक्षों को लेकर देश के विभिन्न भागों से आये लगभग 40 विद्वानों ने खुलकर अपने विचार व्यक्त किये। उत्तर भारत में आयोजित संगोष्ठी में दक्षिण के अनेक विद्वानों का समागत अत्यन्त उत्साहवर्धक रहा। आलेखों को विषयों के वर्गीकरण के आधार पर आमन्त्रित किया गया था। लगभग सभी विद्वानों ने अपने आलेख एक माह पहले ही भेज दिये थे। हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत इन आलेखों में से कई आलेखों
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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