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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
__. “संसार से पार होने के कारण को तीर्थ कहते हैं, उसके समान होने से आगम को तीर्थ कहते हैं उस आगम के कर्ता को तीर्थकर कहते हैं। किंबहुना, विस्तृत, विशद और प्रामाणिक अध्ययन हेतु चिन्तक मनीषी विद्वान श्री जिनेन्द्र वर्णी के जैनेन्द्र कोश के भाग दो पृ. ३७३ को आधार बनाना उचित होगा।
वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है। पूर्व में लिखा जा चुका है, . प्रत्येक कल्प में २४ तीर्थंकर होते हैं। कालक्रम से श्री पार्श्वनाथ २३वें तीर्थंकर हैं। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही जैन आम्नायों के अनुयायी पार्श्व प्रभु को विशेष महत्ता देते हैं। इनके पिता का नाम अश्वसेन और : माता का नाम वामा देवी था। अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। इन्हीं के गृह वामा देवी की कुक्षि से पार्श्व कुमार का जन्म हुआ था। महाकवि रइधु ने भी इन्हीं नामों का उल्लेख किया है। कई अन्य ग्रन्थों में माता-पिता . के नामों में अन्तर भी मिलता है। लेकिनं उक्त वामा और अश्वसेन को ही मान्यता प्राप्त है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का विस्तार से उल्लेख मिलता है, “पार्श्वनाथ पूर्व के नवमें भव में विश्वमूर्ति ब्राह्मण के घर में मरुभूति नामक पुत्र थे।... फिर वज्रघोष नामक हाथी हुए। वहां से सहस्रार स्वर्ग में देव हुए। फिर पूर्व के छठवें भव में रश्मिवेग विद्याधर हुए तत्पश्चात् अच्युत स्वर्ग में देव हुए। वहां से च्युत हो वज्रनामि नाम के चक्रवर्ती हुए। फिर पूर्व के तीसरे भव में मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए। फिर आनन्द नामक राजा हुए। वहां से प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुए। तत्पश्चात् वहां से अच्युत होकर वर्तमान भव में २३वें तीर्थंकर हुए” ११२ ..
इस तथ्य से विद्वान सहमत होंगे कि किसी भी महापुरुष की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए अभिलेखीय अथवा साहित्यिक प्रमाणों की आवश्यकता होती है। इस सम्बन्ध में दोनो ही प्रकार के साक्ष्यों की कमी नहीं है। जैन साहित्य की पूर्व पीठिका (इतिहास) में पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता पर विचार करते हुए जैन साहित्येतिहास के मर्मज्ञ श्रद्धेय पंडित कैलाशचन्द्र. शास्त्री ने डॉ. हर्मन जेकोबी एवं बौद्ध ग्रन्थों में प्राप्त तथ्यों का उद्घाटन करते हुए निष्कर्ष दिया है कि “त्रिपिटकों के उल्लेखों से यह प्रमाणित होता