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तीर्थंकर पार्श्वनाथ : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
डॉ॰ प्रेमचन्द्र जैन*
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श्रमण एवं ब्राह्मण दोनों संस्कृतियों के स्रोत, उपलब्ध ग्रन्थों में प्राचीनतम ऋग्वेद में सुलभ हो जाने के बावजूद भगवान् महावीर स्वामी को ही विविध ं पाठयक्रमों में आज भी जैन-धर्म का प्रवर्तक घोषित किए जाते रहना दुर्भाग्यपूर्ण है। जब किं विश्वसनीय जैनागमों के अनुसार सृष्टि के आदि नियामकों में ऋषभदेव / आदिनाथ जैनों के प्रथम तीर्थंकर थे। दरअसल हम और हमारे पूर्वजों द्वारा इतिहास की संरक्षा न कर पाने से वर्तमान स्थिति सामने आई है । परिस्थितियां जो भी रही हैं उनमें उलझना समय को नकारना होगा । हमें समस्त विवादों को पीछे छोड़कर अपनी ऐतिहासिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का संरक्षण करना अपेक्षित ही नहीं आवश्यक भी हो गया । जहां एक ओर उपलब्ध साहित्येतिहास की सुरक्षा का प्रबन्ध हो, वहीं अनुपलब्ध इतिहास की पूर्वापर • कड़ियां जोड़ने का अपूर्व प्रयत्न जारी रहे तो संभव है कि श्रमणों के श्रम का इतिहास उजागर हो जाए। इस दिशा में समाज के कर्णधारों, शोधार्थियों एवं विद्वानों में जागृति का संचार और सामञ्जस्य स्थापित होना बहुत ही शुभ संकेत है।
जैन- सिद्धान्तानुसार प्रत्येक कल्प में २४ तीर्थंकर होते हैं । यह अद्भुत संयोग और साम्य है कि बौद्ध धर्मानुयायी भी २४ बोधिसत्व तथा सनातन धर्मी २४ अवतार स्वीकार करते हैं । श्री पार्श्वनाथ जैनों के २३वें तीर्थंकर हैं और शिलापटों, प्राकृत, संस्कृत, पालि, हिन्दी आदि साहित्यिक कृतियों में उत्कीर्णित-अंकित प्रमाणों के आधार पर असंदिग्धरूप से ऐतिहासिक शलाका पुरुष हैं । बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के ऐतिहासिकता की कड़ी भी. * रीडर, हिन्दी विभाग, साहू जैन कालेज, नजीबाबाद