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शैल चित्रकला संपदा और भ. पार्श्वनाथ
___ - डॉ. अभयप्रकाश जैन*
___ वर्तमान जैन परंपरा भगवान् महावीर की विरासत है इससे पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्वनाथ की परंपरागत तीर्थंकर विरासत है लेकिन पाश्चात्य ऐतिहासिक पुरातात्विक बुद्धिं बिना किसी साक्ष्य या प्रमाण के चुप बैठने वाली कहां थी। जैन परंपरा के लिए श्रद्धा के कारण जो बात असंदिग्ध थी उसी के विषय में वैज्ञानिक दृष्टि से एवं ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने वाले तटस्थ पाश्चात्य विद्वानों ने संदेह प्रकट किया कि पार्श्वनाथ आदि पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के अस्तित्व में क्या कोई ऐतिहासिक प्रमाण है। इसका प्रत्युत्तर सही-सही जैन विद्वानों को देना चाहिए था लेकिन वे न दे सके। अंतत: डॉ. हर्मन जैकोबी जैसे पाश्चात्य जर्मन विद्वान आगे आए और उन्होंने सर्वप्रथम समस्त विश्व के सामने पुरातात्विक ऐतिहासिक दृष्टि से अन्वेषण एवं शोध करके अकाट्य प्रमाणों के आधार पर बताया कि जैन धर्म के तीर्थकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक हैं।
इस विषय में जैकोबी ने जो प्रमाण स्थापित किए उनमें जैन आगमों के अतिरिक्त बौद्ध पिटक का भी समावेश किया। बौद्ध पिटक गत उल्लेखों से जैन आगम गत वर्णनों के मेल से इतिहासकारों की स्थिति दृढ़तर हुई कि महावीर से पूर्व पार्श्वनाथ हुए हैं। जैकोबी द्वारा पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता स्थापित होते ही विचारक और गवेषणा करने वाले विद्वानों को उपलब्ध जैन आगम अनेक बातों के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व के सिद्ध हुए और पाश्चात्य विद्वान भी जैन आगमों का अध्ययन करने लगे। फलत: भारतीय जैन विद्वानों तथा पाश्चात्य विद्वानों ने जैन आगमों के आधार पर शोधपरक सामग्री तैयार करके उसका प्रकाशन किया। इसका प्रभाव. यह * ग्वालियर