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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा - के आलोक में भगवान् पार्श्वनाथ वाराणसी सु जन्म वंश इक्ष्याकु मंझारी । लछिन सरप जु वन्यों प्रभु उपसर्ग निवारी । । गणधर जु भये दशज्ञान घर कोस पाँच समवादि मनि । श्री पार्श्वनाथ मेटौ सदा कमठ मान वनदव अगनि । १९५ अर्थात् पार्श्व प्रभु के पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामा देवी था। उनकी काया हरितवर्ण की और नौ हाथ ऊँची थी। उनकी आयु १०० वर्ष की विख्यात थी । उनका जन्म वाराणसी में प्रसिद्ध इक्ष्वाकुवंश में.हुआ था। उनका चिन्ह नाग था, जिसने प्रभु पर आये उपसर्ग को दूर किया था । उनका समवशरण पाँच कोस में फैला हुआ था और उनके गणधर दशज्ञान के धारी थे । हे पार्श्व प्रभु आप कमठ जैसे दुष्टों के मान को और इस संसार रूपी वन में लगी अहंकार रूपी दावाग्नि को सदैव मिटाते रहें । जब पार्श्वप्रभु का जन्म हुआ तो सब ओर बधाइयां होने लगीं, मंगल गीत गाये जाने लगे। उनके जन्म से तीन लोक में यहाँ तक कि नरक में भी नारकियों ने कुछ समय के लिए शान्ति प्राप्त की । दौलतराम जी लिखते हैं कि : वामा घर बजत बधाई चलि देख री भाई | टेक | सुगुरास जग- आस भरन तिन, जनै पार्श्व जिनराई । श्री ही धृति कीरति बुद्धिलक्ष्मी, हर्ष अंग न माई ।। 'बरन - बरन मनि चूर सची सब, पूरत चौक सुहाई । हा-हा हू-हू नारद तुम्बर, गावत श्रुति सुखदाई । चलि. । २ । तांडव नृत्य नटत हरिनट तिन, नख-नख सुरो न चाई। किन्नर कर धर बीन बजावत, दृगमनहर छबि छाई । । चलि. । ३ । 1 दौल तासु प्रभु की महिमा, सुरगुरू चे कहिय न आई । जाके जन्म समय नरकन में, नारकि साता पाई । ७ । चलि. ।४।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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