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________________ अपभ्रंश भाषा के पार्श्वनाथचरित - एक विमर्श १९१ गया है। कमठ का जीव मरूभूति के जीव से ९ भवों तक निरन्तर बैर करता रहता है। १०वे भव में मरुभूति का जीव तीर्थंकर पार्श्वनाथ के रूप में आत्मकल्याण करता है। पार्श्वनाथ ३० वर्ष की आयु में दीक्षा धारण कर लेते हैं और कठिन तपस्या करने के फलस्वरूप सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त करते हैं। इस ग्रन्थ की एक ही हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है, जो श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर कटरा आगरा में है। इन्होंने मूलसंघ वलात्करगण के आचार्यों का उल्लेख किया है। अत: जान पड़ता है कि वे इसी से संबद्ध थे। ग्रन्थ रचना चौहानवंशी राजा पृथ्वी सिंह के राज्यकाल में वि.सं. १४७९ (१४२२ ई.) में हुई थी। ७. पासपुराण - तेजपाल __ पासपुराण पद्धडिया छन्द में लिखित एक खण्डकाव्य है। ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रतियां भट्टारक हर्षकीर्ति भंडार अजमेर बड़े घड़े का मन्दिर अजमेर तथा आमेरशास्त्र भण्डार जयपुर में है। बड़े घड़े का मन्दिर अजमेर तथा अमेरशास्त्र भण्डार जयपुर की प्रति का रचनाकाल क्रमश: वि.सं. १५१६ और १५७७ (१४५९ और १५२० ई.) है। कवि. तेजपाल मूलसंघ के भट्टारक रत्नकीर्ति, भुवनकीर्ति और विशालकीर्ति की आम्नाय से संबंधित थे। इन्होंने पासपुराण की रचना मुनि:पद्मनन्दि के शिष्य शिवनन्दि भट्टारक के संकेत से वि. सं. १५१५ (१४५८ ई.) में की थी। ... भगवान पार्श्वनाथ के जीवन-दर्शन को प्रस्तुत करने वाले अपभ्रंश भाषा के ये चरितं ग्रन्थ प्रकाश में आने चाहिएं, उससे भ. पार्श्व के जीवन की छवि और अधिक प्रकाशवान होगी। इन ग्रन्थों में अंकित मध्ययुगीन भारतीय संस्कृति के अनेक नये पक्ष भी उजागर हो सकते हैं। .. संदर्भ .१ । (क) देवेन्द्र कुमार शास्त्री, अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियां (ख) जयकुमार जैन, पार्श्वनाथचरित का समीक्षात्मक अध्ययन, १९८७
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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