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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
'कमठ द्वारा कुशील सेवन एवं उसका दुष्परिणाम
उधर राजा अरविन्द और मरुभूति के युद्ध में चले जाने के पश्चात् कमठ के जीव ने काम-वासना से प्रेरित हो जब अपने अनुज की पत्नी का सेवन करना चाहा तो कवि ने उसके मित्र कलहंस के माध्यम से अनुज-वधु के सेवन रूप निकृष्ट कार्य की निन्दा की है और उसके दुष्परिणामों का उल्लेख करते हुये अधोगति का भय दिखलाया है कि परस्त्री के लम्पट वे पापी मूर्ख राजा वध-बन्धन आदि प्राप्त कर दुर्गति रूपी समुद्र में निमग्न होते हैं। जो मनुष्य इस लोक में अन्य स्त्रियों का आलिंगन करते हैं, वे नरक में तपाये हुये लोहे की पुतलियों के आलिंगन को प्राप्त होते हैं और इस लोक में राजा के द्वारा सर्वस्व हरण और प्राणदण्ड आदि प्राप्त करते हैं।"
कवि ने रावण आदि के उदाहरण देकर कुशील सेवन की अभिलाषा करने वाले को महापाप का भागी एवं नरकयामी बतलाया है। किन्तु जिस प्रकार अन्ध पुरुष के सामने नृत्य, क्षीण आयु वाले पुरुष को प्रदत्त औषधि और रागी पुरुष को दिया गया हितकारी धर्म का उपदेश व्यर्थ होता है, उसी प्रकार पाप को नष्ट करने वाले धर्म के सूचक और अनाचार को नष्ट करने वाले कलहंस नामक मित्र के सारपूर्ण समस्त वचन कमठ के पाप से व्यर्थ हो गये।
यहां कवि ने कमठ के द्वारा सेवित कुशील और उसके परिणाम स्वरूप अनेक कुगतियों को प्राप्त होने वाले कमठ के जीव का क्रमश: अनेक सर्गो में विवेचन किया है और स्पष्ट किया है कि कुशील ही वह मूलाधार है जिस पर कमठ के जीव का आगामी भवों का निकृष्ट एवं पापमय जीवन का ढांचा खड़ा हुआ है।
भगवान् पार्श्वनाथ के दश भव __तेइस सर्गों में विभक्त यह 'पार्श्वनाथ-चरितम्' एक उत्कृष्ट महाकाव्य है, जो पुराण एवं काव्य - इन दोनों शैलियों में गुम्फित किया गया है। इसके प्रारम्भिक नौ सर्गों में भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम नौ भवों -