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________________ ११३ - तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा नाग जाति भारत में नागों का पुनरुत्थान उपरोक्त १२ राज्य वंशों में भी सर्वप्रधान राज्य कुरूदेश में हस्तिनापुर के पुरू, कुरू अथवा पाण्डव वंशियों का था। अर्जुन का पौत्र परीक्षित इनका अधीश्वर था। किन्तु उसके समय में ही वैदिक आर्यों की बढ़ती हुई शक्ति के सम्मुख चिरकाल से दबी रही नाग आदि जातियां फिर से यत्र-तत्र सिर उठाने लगीं। पश्चिमोत्तर प्रदेश की तक्षशिला और सिन्धु मुख की पातालपुरी के नाग विशेष प्रबल हो उठे। नवीन उत्साह से जागृत, विशेषकर तक्षशिला के नागों ने कुरू राज्य के ऊपर भीषण आक्रमण शुरू कर दिये। उनके साथ युद्ध में ही परीक्षित की मृत्यु हुई। नागों की बढ़ती हुई शक्ति का परीक्षित के उत्तराधिकारी अधिक समय तक मुकाबला नहीं कर सके। धीरे-धीरे वेदानुयायी क्षत्रिय राज्य शक्ति का कम से कम कुरू प्रदेश में अन्त हो गया। तदनन्तर नागों ने उस पर अधिकार कर लिया। तभी से गजपुर या हस्तिनापुर का नाम नागपुर या हस्तिनांगपुर भी प्रचलित हुआ। यह घटना लगभग नौवीं-दसवीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। इसी समय के लगभग विदेह,तथा वैशाली में भी क्रान्ति हुई तथा यहां भी श्रमणोपासक गणराज्य स्थापित हो गये। काशी में भी उरग या नाग वंशी व्रात्य क्षत्रियों का राज्य स्थापित हो गया। इस वंश में ब्रह्मदत्त नाम का बड़ा प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट हुआ। आठवीं शती ईसा पूर्व में मगध में भी राज्य-विप्लव हुआ तथा सत्ता परिवर्तित हो गई। इस प्रकार धीरे-धीरे वैदिक परम्परा शिथिल होने लगी तथा नागों का प्रभाव बढ़ने ___ नागों की इसी परम्परा में भगवान् पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के नरेश थे। पार्श्वनाथ के बाद महाप्रतापी नाग वंशी राजा करकंडु हुआ जो पार्श्वनाथ का अनुयायी था। श्री नगेन्द्र नाथ बसु लिखते हैं कि “इतना अवश्य कह सकते हैं कि ई. सन् के ६८१ वर्ष पहले नाग राजगण प्रबल प्रताप से वहां राज्य शासन करते थे।" अत: भगवान् पार्श्वनाथ के पश्चात् भी नागों का अच्छा प्रभाव रहा है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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