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तीर्थकर पार्श्वनाथ संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति के तुलनात्मक अध्ययन से यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है कि इन दोनों संस्कृतियों में परस्पर कोई सम्बन्ध या सम्पर्क नहीं था। वैदिक धर्म सामान्यतया अमूर्ति पूजक है जब कि मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में मूर्ति पूजा सर्वत्र स्पष्ट परिलक्षित होती है। मोहनजोदड़ो के मकानों में हवन कुण्डों का सर्वथा अभाव है। - प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार सिंधु घाटी की सभ्यता को जैन धर्म से सम्बन्धित मानते हैं। उनके अनुसार वहां से प्राप्त एक मुद्रा (नं. ४४९) पर 'जिनेश्वर' (जिन इइसरह) शब्द लिखा हुआ है। कायोत्सर्ग मुद्रा में प्राप्त मूर्तियां भी इस ओर ही इशारा करती हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता जैन धर्म से सम्बन्धित थी। राजस्थान के गंगानगर जिले में सोती और कटोती के उत्खनन से प्राप्त पुरातत्वीय सामग्री से भी लगता है कि वहां भी वैदिक धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का प्रचार था। सोती और कटोती सरस्वती की घाटी में स्थित है तथा हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित है।
नाग वंश का उत्कर्ष
__ पाश्चात्य विद्वानों के मतानुसार आर्य जाति के भारतवर्ष पर अपनी गोटी जमाने से पूर्व इस देश में नाग वंश के राजा,शासन करते थे। इस वंश ने भारतवर्ष के विभिन्न स्थानों तथा सिंहल पर ही शासन नहीं किया बल्कि सिन्धु नदी के पश्चिमी क्षेत्रों में भी विस्तार किया। इनका राज्य विस्तार कामरूप (आसाम) से ले कर सुदूर पश्चिम में अफ्रीका तथा मिस्र आदि देशों तक फैला हुआ था। अफ्रीका में भी नाग जाति का आधित्य था, इसके कुछ प्रमाण मिलते हैं। इतिहास, पुराणों के अनुसार नाग वंशी पाताल लोक में भी राज्य करते थे। कुछ विद्वानों का मत है कि अफ्रीका ही पाताल लोक है। आज भी अफ्रीका के अनेक देश तल या ताल के नाम के साथ हैं, जैसे तल अगरब, तल बिल्ला. तल अमरीन, तल हशुना, तेल अबीब आदि।
विद्याधर जाति भी नागों से सम्बन्धित थी। इसका भी अफ्रीका के कुछ भाग में शासन था। रावण के पूर्वज माली, सुमाली तथा माल्यवान