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________________ ७४ तीर्थंकर पार्श्वनाथ - एक खड्गासन प्रतिमा, जिसके दोनों ओर यक्ष-यक्षी खड़े हैं तथा वक्ष पर श्रीवत्स अंकित है। इस प्रतिमा पर कोई चिन्ह नहीं है और न ही कोई अलंकरण है। इन कारणों से इसे प्रथम शती. में निर्मित माना जाता है। एक शिलाफलक पर चौबीसी अंकित है। मध्य में पद्मासन ऋषभदेव का अंकन है। केशों की लटें कंधो पर लहरा रही हैं। पादपीठ पर वृषभ चिन्ह अंकित है। दोनो पार्यों में शासन देवता चक्रेश्वरी और गोमुख. का अंकन है। दोनों द्विभुजी और अलंकरण धारण किये हुए हैं। चक्रेश्वरी के एक हाथ में चक्र तथा दूसरे में बिजौरा है। मूर्ति के मस्तक पर त्रिछत्र और दोनों ओर सवाहन गज हैं। त्रिछत्र के ऊपर दो पंक्तिओं में पद्मासन और कायोत्सर्ग मुद्रा में २३ तीर्थंकर मूर्तियां हैं। पीठिका के नीचे की ओर उपासकों का अंकन किया गया है। इसका समय ११वीं शताब्दी अनुमानित किया गया है ।१९ उक्त पुरातत्व सामग्रियों के अतिरिक्त भेलपर स्थित पार्श्वनाथ मंदिर के पुनः निर्माण के समय भू-गर्भ से अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिनमें पार्श्वनाथ की एक भव्य एवं प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई है। खुदाई करते समय असावधानी के कारण पार्श्वनाथ की प्रतिमा खण्डित हो गई। प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के प्रसिद्ध अध्येता प्रो. एम. ए. ढाकी ने इस दुर्लभ प्रतिमा को ई. सन् ५वीं शती का तथा अन्य कलाकृतियों को ९वी और ११वी शती का बतलाया है। अज्ञानतावश अनेक मूल्यवान जैन कलाकृतियां मंदिर की नीव में ही डाल दी गईं। इस प्रकार पुरातत्व की प्रचुर उपलब्धता इस ओर संकेत करती है कि काशी की जैन श्रमण परम्परा का इतिहास बहुत प्राचीन है और तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रभाव अन्य तीर्थंकरों की अपेक्षा अधिक रहा है। इतना ही नहीं आज भी जगह-जगह पर दिगम्बर जैन मूर्तियों के अवशेष विभिन्न रूपों में पूजे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए "मुड़कट्टा बाबा" के नाम से विख्यात जो मूर्ति अवशेष रूप में उपलब्ध है, वह एक कायोत्सर्ग मुंद्रा में खण्डित दिगम्बर जैन मूर्ति है। यह मूर्ति दुर्गाकुण्ड भेलूपुर मार्ग में मुख्य
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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