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(३१) · मध्य व्यासोऽयमेवैषां, सर्वत्रैवं विभाव्यताम् । - स्यादुपायान्तरमेतन्मध्य विष्कम्भनिश्चये ॥१५५॥
शिखर के नीचे आठ सौ साठ योजन और दो कोस नीचे उतरने के बाद यदि चौड़ाई जाननी हो तो उसे पांच सौ अठानवे से गुणा करना तब पांच लाख चौदह हजार पांच सौ उनहत्तर (५१४५६६) होता है, उसे सत्रह सौ इक्कीस की संख्या (जो गिरी की ऊंचाई) से भाग देने से दो सौ निन्यानवे होते है और उसमें चार सौ
चौबीस मिलाने से सात सौ तेईस योजन विस्तार हुआ, और यही सभी पर्वतों का .. मध्य भाग का विस्तार है। यह मध्यम व्यास जानना । इसलिए दूसरा भी उपाय है। (१५१-१५५)
८६० योजन४५६८ = ५१४२८० - . १/२ योजनx५६८ = २६६/५१४५१६ योजन होता है । १७२१)५१४५७६(२६६ योजन लम्बा
३,४४२ १७०३६ १५४८६ १५४८६
१५४८६
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मूले शिरे च विष्कम्भो यौ तद्योगेऽर्द्धिते सति । . सर्वत्र मध्यविष्कम्भो, लभ्यो ऽत्रभाव्यतां स्वयम् ॥१५६॥ . मूल और ऊपर का जो विस्तार है उसका जोड़ करके आधा करे तो सर्वत्र मध्य विस्तार आता है यह स्वयं बात विचार करे लेना । (१५६)
१०२२ योजन मूल का व्यास
४२४ योजन ऊपर का व्यास ... १४४६ जोड़ का आधा ७२३ योजन वह मध्यम की चौड़ाई है ।