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________________ 'क्षेत्र लोक (उत्तरार्द्ध)' नाम से प्रसिद्ध 'लोक प्रकाश' ग्रन्थ का तीसरा भाग (सर्ग २१ से २७ तक) आपके हाथों में हैं । वय विषय की अनुक्रमणिका इस प्रन्थ के प्रारम्भिक पृष्ठों पर दी गई है, इससे विषय अन्वेषन में सुविज्ञ पाठक जन को सुविधा होगी । इस ग्रन्थ का विषय यद्यपि दुरुह है फिर भी सूक्ष्मति सूक्ष्म विचार पूर्ण रूप से जैन शैली के अनुरूप हैं । भाषानुवाद में मेरी मतिमंदता अथवा कथचित् प्रमाद वश कहीं कोई स्खलनता रही हे तो मिच्छामि दुक्कडं करोमि"। सुहय एवं सुविज्ञजन विचार सहित अध्ययन करें । कहा भी है कि - अवश्यं भाविनो दोषाः, छद्मस्थत्वानु भावतः। समाधिंतन्वते सन्तः, किंनराश्चात्र वक्रगा ॥ गच्छतः स्खलनं क्वापि, भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र, साधयन्ति सजनाः ।। शिवं भवतु-सुखं भवतु-कल्याणं भवतु आचार्य पद्म चन्द्र सूरि का धर्म लाभ
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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