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चैत्यस्तूपस्तदुपरि, स योजनानि षोडशा ।। आयतो विस्तृतस्तुङ्गः सातिरेकाणि षोडश ॥२०६॥
उसके ऊपर चैत्य स्वरूप है जो लम्बी-चौड़ी सोलह योजन और ऊंचाई सोलह योजन से कुछ अधिक है । (२०६)
मणि पीठिका श्चतस्रः स्तूपस्यास्य चतुर्दिशम् । योजनाष्टाष्ट विस्तीर्णा यताश्चत्वारि चोच्छ्रिताः ॥२१०॥
इति जीवाभिगम वृत्तौ ॥ इस स्तूप के चारों तरफ चार मणि पीठिका है जो आठ योजन लम्बी चौड़ी और चार योजन ऊंची है । यह बात श्री जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति में कही है । (२१०)
तासामुपरि च स्तूपाभिमुख्याः श्री मदर्हताम् । जयन्ति प्रतिमाश्चन्जन्मरीचिनिचयान्चिताः ॥२११॥
इस मणि स्तूप के ऊपर रहे स्तूप के सन्मुख श्री अरिहंत भगवान की देदीप्यमान प्रतिभा विजयी हो रही है. । (२११), .: चैत्यस्तूपात्परा तम्माद्विभाति मणि पीठिका ।।
विष्कम्भायामतः स्तूपपीठिका सन्निभैव सा ॥२१२॥ - उस चैत्य स्तूप के आगे मणि पीठिका शोभते है जो लम्बाई चौड़ाई में स्तूप की पीठिका समान है । (२१२)
उपर्यस्याः पीठिकायाश्चैत्यवृक्षो विराजते । विजया राजधान्युक्त चैत्यवृक्षसहोदरः ॥२१३॥ वीक्ष्य चैत्य श्रियं रम्यां, विश्व लक्ष्मी विजित्वरीम्। मरूच्चलशिरोव्याजादाश्चर्य व्यजन्निव ॥२१४॥
विश्व की लक्ष्मी को जीतने वाली सुन्दर इन चैत्य लक्ष्मी को देख कर, पवन से चलाय मान उर्ध्व शाखा रूपी सिर विभाग के बहाने से मानो आश्चर्य को व्यक्त करता हो ऐसा यह चैत्य वृक्ष इस पीठिका के ऊपर के विभाग में शोभायमान