________________
(xiii)
(१५) वीशी स्तवन:- यह विहरमान बीस तीर्थंकर परमात्माओं का स्तवन है। इसमें
हर एक स्तवन की पाँच-पाँच गाथा है। चार स्तवनों की छ: छ: गाथा है। कुल मिलाकर ११५ गाथाओं का संयोजन किया है। अन्तिम में प्रशस्ति रूप से 'कलश' लिखा है। श्री कीर्ति विजय उवझायणो ए, विनय वद्दे कर जोड़।
श्री जिनना गुणगावतां ए, लहीए मंगल कोड ।। . इस प्रकार से मध्यम प्रकार की इस कृति द्वारा बीस विहरमान परमात्मों के
शरीर, आयुष्य आदि का वर्णन भी किया गया है। (१६) पुण्य प्रकाश अथवा आराधनानुस्तवन:- आचार्य श्री 'सोम सूरि 'रचित
'आराधना सूत्र' नाम के पचन्ना के आधार पर ८ ढ़ाल और ८७ गाथाओं का यह स्तवन वि०सं०. १७२६ में रांदेर के चातुर्मास के प्रवासकाल में रचा गया था। गुजराती भाषा में रचित यह लघु कृति अत्यन्त मर्मस्पर्शी और सुन्दर है। पूर्ण मनोयोग पूर्वक इसके पठन-पाठन-वाचन या श्रवण करने से व्यक्ति आत्म विभोर हो जाता है। अत्यन्त भावातिरेक उत्पन्न होने से आँखोंसे अश्रु प्रवाहित होने लगते हैं। ताप-शोक-पीड़ा-विषाद-दुखः अथवा अन्तिम अवस्था जैसे प्रसंगों पर यदि अत्यन्त प्रभावोत्पादक एवं हृदय तलस्पर्शी शबदावली का प्रयोग करके गाया जाय, पढ़ा जाय या समझाया जाय तो यह निश्चय ही मन पर वैराग्य भाव की अमिट छाप छोड़ती है। इसमें दस प्रकार की आराधना बताई गई है । जैसे - . (१) अतिचार की आलोचना (२) सर्वदेशीय व्रत ग्रहण (३) सब जीवों के साथ क्षमापण (४) १८ पापों को वोसिरावा (५) चारों शरण को स्वीकारना (६) पापों की निंदा (७) · शुभ कार्यों को अनुमोदना (८) शुभभावना (६). अनशन-पच्चखाण (१०) नमस्कार महामंत्र स्मरण इस तरह प्रतिदिन नियम पूर्वक, भाव सहित पढ़ने-वाचने-बोलने-सुनने-सुनाने
से आत्मा निर्मल होती है। (१७) विनय विलासः- उपाध्याय 'श्री विनय विजय' जी रचित गुजराती भाषा की
यह छोटी सी कृति मानों अपने उपकारी गुरूदेव उपाध्याय 'श्री कीर्ति विजय' जी म० सा० के चरण कमलों में अर्पित भाव सुमन है। यह लघु रचना ३६ पदों में निबद्ध है।