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________________ (५७६) वह पूर्वोक्त बारह अंश प्रतर वृत्त के ऊपर दूसरे बारह परमाणु का स्थापन करने से और फिर मध्य में चार परमाणु के ऊपर और नीचे चार-चार परमाणु की स्थापना करने से होती है । (६१-६२) ओजःप्रदेशं प्रतरत्र्यस्त्रं तु त्रि प्रदेशकम् । त्रि प्रदेशावगाढं च तदेवं जायते यथा ॥६३॥ स्थाप्येते द्वावणूपंक्त्या एकस्याद्यस्ततः परम् । एकोऽणुः स्थाप्यते इति निर्दिष्टं शिष्ट दृष्टिभिः ॥६४॥ जिसके तीन प्रदेश हों और तीन प्रदेश का अवगाह हो वह ओज प्रदेशी प्रतर त्रिकोण कहलाता है। वह दो परमाणु का श्रेणिबन्ध स्थापन करके एक के नीचे दूसरे एक परमाणु को स्थापन करने से होता है । (६३-६४) युग्म प्रदेशं प्रतरत्र्यस्त्रं तु षट् प्रदेशकम् । षट् प्रदेशावगाढं च तदेवं किल जायते ॥६५॥ त्रयः प्रदेशाः स्थाप्यन्ते पंक्त्याणु द्वितयं ततः । आद्यस्याधो द्वितीयस्यत्वध एको निवेश्यते ॥६६॥ जिसके छः प्रदेश हों और छः प्रदेशों का अवगाह हो वह युग्म प्रदेशी प्रतर त्रिकोण कहलाता है, वह श्रेणिबंध तीन प्रदेशों की स्थापना करके उसमें पहले के नीचे दो परमाणु की स्थापना करने और दूसरे के नीचे एक परमाणु की स्थापना करने से होता है । (६५-६६) __ ओजाणुकं धनत्र्यस्त्रं पंच त्रिंशत्प्रदेशकम् । पंच त्रिंशखप्रदेशावगाढं च भवेद्येथा ॥६७॥ . .. जिसके पैंतीस प्रदेश होते हैं और पैंतीस आकाश प्रदेश का अवगाह होता है वह ओज प्रदेशी त्रिकोण घन कहलाता है । (६७) तिर्यक् निरन्तराः पंच स्थाप्यन्ते परमाणवः । तानधोऽधः क्रमेणौवं स्थाप्यन्ते परमाणवः ॥१८॥ तिर्यगेव हि चत्वारस्त्रयोद्वावेक एव च । जातोऽयं प्रतरः पंचदशांश: पंच पंक्तिकः ॥६६॥ ततश्चास्योपरि सर्वपंक्तिष्वन्त्यान्त्यमं शकम् । विमुच्यांशा दश स्थाप्यास्तस्याप्युपरि षट् तथा ॥७०॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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