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________________ ( ५३४ ) जघन्यो भवसंवेधो जघन्य जीविनोः द्वयोः । एक मास पृथकत्वाढ्याः दस वर्ष सहस्त्रकाः ॥८६॥ दोनों जघन्य आयुष्य वाले हों तो उनका जघन्य भवसंवेध काल दस हजार वर्ष और अलग एक महीना है । (८६) यथा वा- ज्येष्ठायुषस्तिरश्चः प्रोद्भवतः सप्तमक्षितौ । जघन्यायुष्टयोत्कृष्टा भवसंवेध संस्थितिः ॥६०॥ चतुः पूर्व कोटि युक्ताः स्युः षट् षष्टिः पयोधयः । अल्पायुषो ऽन्तर्मुहूर्त्त चतुष्टयजोऽस्य ते ॥ ६१ ॥ युग्मं । जघन्य आयुष्य वाले को सातवें नरक में उत्पन्न होते, उत्कृष्ट आयुष्य वाले तिर्यंच का उत्कृष्ट भवसंवेध काल चार करोड़ पूर्व और छियासठ सांगसेपम का है, और जघन्य आयुष्य वाले का भवसंवेध काल इस संख्या से अधिक चार अन्तर्मुहूर्त ज्यादा का होता है । (६०-६१ ) 1 यथा वा.....ज्येष्ठायुषां नृणां ज्येष्ठायुष्टया सप्तम क्षितौ । ज्येष्ठः कालः पूर्व कोटयाढ्या स्त्रयस्त्रिंशदब्धयः ॥६२॥ उत्कृष्ट आयुष्य रूप में करके सातवें नरक में उत्पन्न होने वाले उत्कृष्ट `आयुष्य वाले मनुष्य का उत्कृष्ट भढयावसंवेध काल एक करोड़ पूर्व और तैंतीस सागरोपम है । (६२) जघन्यायुर्नृणाम ल्पायुष्टया सप्तम क्षितौ । जघन्योऽवद पृथकत्वाढ्या द्वाविंशति पयोधयः ॥ ६३ ॥ अल्प आयुष्य रूप से सातवें नरक में उत्पन्न होने वाले जघन्य आयुष्य वाले मनुष्य का जघन्य भवसंवेध काल बाईस सागरोपम व अलग एक वर्ष का है। (६३) एवं सर्वेषु भंगेषु सर्वेषामपि देहिनाम् । विभाव्यो भवसंवेध कालो गुरुर्लघुः स्वयम् ॥६४॥ इस तरह से सारे विभागों में, सर्व प्राणियों का उत्कृष्ट अथवा जघन्य भव संवेध काल स्वयमेव समझ लेना चाहिए। (६४) स्याद् भूयान् विस्तर इति नेह व्यक्त्या विविच्यते । पचंमांगे चतुविंशशतं भाव्यं तदर्थिभिः ॥६५॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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