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________________ (५३२) - तीन पल्योपम के आयुष्य वाला मनुष्य उत्कृष्ट दो देवलोक तक जाता है । इससे ऊपर तो अधिक से अधिक चाहे करोड़ पूर्व का आयुष्य भी हो, वह भी वहीं तक जाता है। (७५) तिर्यक् युग्मिनृतिर्यक्षुत्वन्तर्मुहूर्त जीवितः । गच्छेज्जघन्यतो मास पृथकत्वायुर्नरः पुनः ॥७६॥ अन्तर्मुहूर्त के आयुष्य वाला तिर्यंच और जघन्यतः पृथकत्व मास के आयुष्य वाला मनुष्य युगलिक मनुष्य की या तिर्यंच की गति प्राप्त करता है । (७६) । उत्कर्षतः पूर्व कोटिमानायुष्कावुभावपि । असंख्यायुतिर्यक्षुत्पद्येते नाधिकायुषौ ॥७७॥ तथा उत्कृष्टतः पूर्व करोड़ के आयुष्य वाले इन दोनों को असंख्यात आयुष्य वाले मनुष्य की अथवा तिर्यंच की गति प्राप्त होती है । इससे अधिक आयुष्य वाले की यह गति नहीं होती है । (७७). उक्तशेषाणां तु पूर्वापरयोर्भवयोः स्थितिः । गुरुर्लघुश्च ज्ञेया तज्ज्येष्ठा न्यायुरपेक्षया ॥७८॥ .. पूर्व कहे से शेष रहने वालों की पूर्वापर दोनों जन्म की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति इनकी उत्कृष्ट और जघन्य आयुष्य की अपेक्षा से जानना । (७८) एवं च- विवक्षित भव प्राप्य भवयोः परयां स्थितिम् । लघ्वी वा भव संख्या च जघन्यां वा गरीयसीम् ॥७६॥ स्वयं विभाव्य निष्टंक्यं विवक्षित शरीरिणाम् ।। भवसंवेद्य कालस्य मानं ज्येष्ठ मथावरम् ॥८०॥युग्मं। और इसी ही तरह से विवक्षित जन्म की और प्राप्त होने वाले जन्म की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट तथा जघन्य जन्म संख्या स्वयं जान करके, विवक्षित प्राणियों के भवसंवेद्य काल का बड़ा तथा छोटा मान जान लेना चाहिए । (७६-८०) यथा गरिष्टायुष्कस्य मनुष्यस्यादिमक्षितौ । . उत्कृष्टायु रकत्वं लभमानस्य चा सकृत् ॥१॥ उत्कृष्टो भवसंवेध काल: संकलितो भवेत् । चतुः पूर्व कोटि युक्त चतुः सागर समिति ॥८२॥ युग्मं ।
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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