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________________ (५३१) . जघन्यादान्तर्मुहूर्तामुत्कर्षात्पूर्व कोटि काम् । स्थिति बिभ्रद्याति तिर्यग् नरकेष्वखिलेष्वपि ॥६६॥ जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट करोड़पूर्व की स्थिति को धारण करने वाला तिर्यंच सर्व नरकों में जाता है । (६६) तावदायुर्युतेष्वेति तेभ्यो मृत्यापि नारकाः । सहस्त्रारान्त देवेष्वप्यसौ ताद्रक स्थितिव्रजेत ॥७॥ ऐसी स्थिति वाला नरक में से मृत्यु प्राप्त कर उतनी आयुष्य वाले तिर्यंच में उत्पन्न होता है । (उतनी स्थिति वाला तिर्यंच आठवें देवलोक तक उत्पन्न होता है।) (७०) ... देवास्तेऽपीदशायुष्केष्वेष्वायान्ति ततश्च्युताः । असंख्य जीवी तिर्यक्तु यातीशानान्त नाकिषु ॥७॥ ___ वहां से च्यवन कर वह देव भी उतनी ही आयुष्य वाली तिर्यग्र गति प्राप्त करता है और असंख्य आयुष्य वाला तिर्यंच तो ईशान तक के देवलोक में जाता है.। (७१) . . नरो मास पृथक्त्वायुर्धर्मा याति जघन्यतः । .. वंशादिषु मासु षट्सु वर्ष पृथकत्व जीवितः ॥७२॥ पृथकत्व मास के आयुष्य वाला मनुष्य जघन्यतः धम्मा नामक नरक में जाता है, पृथकत्व वर्ष के आयुष्य वाला वंशादि छः नरकों में जाता है । (७२) उत्कर्षात्पूर्व कोट्यायुर्यात्यसौ क्ष्मासु सप्तसु । ... आयान्त्युक्त स्थितिष्वेव नृषूक्त नारका अपि ॥७३॥ · करोड़ पूर्व के आयुष्य वाला मनुष्य उत्कृष्टतः सात नरकों में जाता है और वह नारको उक्त स्थिति वाली मनुष्य गति प्राप्त नहीं करता है । (७३) ना जघन्यात् मास पृथक्त्वायुरास्वयं व्रजेत् । ऊर्ध्वत्वब्द पृथक्त्वायुर्याति यावदनुत्तरान् ॥७४॥ पृथकत्व मास के आयुष्य वाला मनुष्य उत्कृष्ट दो देवलोक तक जाता है और पृथकत्व वर्ष के आयुष्य वाला अन्तिम अनुत्तर विमान तक जाता है । (७४) उत्कर्षात्तु त्रिपल्पायुः स्वयं यावदेति सः । ऊर्ध्वं ततः पूर्व कोट्यायुष्क एव स गच्छति ॥७॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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