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________________ (५१५) सौ धनुष्य का होता है और जघन्य आरम्भ के समय में अंगुल के असंख्यातवें भाम जितना होता है। (६) स्व स्व स्वभाविकतनोर्द्विगुणोत्तर वैक्रियाः । .. गुर्वी लव्यंगुल संख्य भागमाना भवेदसो ॥१०॥ इति अंगमानम् ॥११॥ इनका वैक्रिय शरीर इनके स्वभाविक शरीर से बढ़ते हए डबल हो सकता - है और कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना हो सकता है। (१०) यह देहमान द्वार है। (११) स्युश्चत्वारः समुद्घाता आद्या एषां गतिः पुनः । पर्याप्त गर्भजनरतिरश्चोः संख्य जीविनोः ॥११॥ ___ इति द्वार द्वयम् ॥१२-१३॥ ...... इनको समुद्घात पहले चार होते हैं और इनकी मृत्यु के बाद संख्य आयु वाले पर्याप्त गर्भज मनुष्य और तिर्यंच में जाता है । (११) ये दो द्वार हैं। (१२-१३). . नरपंचाक्ष तिर्यंचः पर्याप्ताः संख्य जीविनः । नारकेषु यान्ति संख्या सामयिक्येषु देववत् ॥१२॥ एषूत्पत्ति च्यवनयोर्मुहूर्ता द्वादशान्तरम् । उत्कर्षतो जघन्यताच्च प्रज्ञप्तं समयात्मकम् ॥१३॥ इति आगतिः ॥१४॥ - इनकी आगति के विषय में कहते हैं- पर्याप्त और संख्यजीवी मनुष्य तथा पंचेन्द्रिय तिर्यंच मृत्यु के बाद यहां आता है, इनमें एक समय की आगति संख्या देव समान हैं । उत्पत्ति और च्यवन के बीच में उत्कष्ट अन्तर बारह मुहूर्त का है और जघन्य अन्तर एक समय का है। (१२-१३) __यह आगति द्वार है। (१४) सामान्यतो नैरयिका लभन्तेऽनन्तरे भवे । सम्यक्त्वं देशविरतिं चारित्रं मुक्तिमप्यमी ॥१४॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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