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________________ (५०८) ज्योतिष्काणां देव देवी वृन्दः संख्य गुणास्ततः । स्व स्व देवेभ्यश्च देव्यः सर्वाः संख्य गुणाः स्मृताः ॥१३१॥ . इति लघ्वी अल्प बहुत्व ॥३३॥ और सौधर्म देवलोक के देवों से भवनपति देव असंख्य गुना हैं, इससे व्यन्तर देव असंख्य गुना हैं और इससे ज्योतिष्क देव- देवियां संख्यात गुणा हैं तथा सर्व देवियां अपने-अपने देवों से संख्य गुणा होती हैं। (१३०-१३१) यह लघ्वी अल्प बहुत्व द्वार है। (३३) . .. ....' पूर्वस्यां च प्रतीच्यां च स्तोका भवन वासिनः । उत्तरस्यां दक्षिणस्यामसंख्येय गुणाः क्रमात् ॥१३२॥ . प्राक्प्रतीच्योर्हि भवनाल्पत्वात्स्तोका अमी किल । दक्षिणोत्तरयोस्तेषां क्रमाधिक्यादिमेऽधिकाः ॥१३३॥ अब इनका दिशा से अल्प बहुत्व कहते हैं- भवनपति देव पूर्व और पश्चिम में सर्व से थोड़े हैं, उत्तर दिशा में और दक्षिण दिशा में अनुक्रम में इससे असंख्य असंख्य गुणा हैं । इसका कारण यह है कि पूर्व पश्चिम दिशा में भवन थोड़े हैं और उत्तर दक्षिण दिशा में भवन अधिक-अधिक हैं। (१३२-१३३) पूर्वस्यां व्यन्तराः स्तोका विशेषेणाधिकाधिकाः । अपरस्यामुत्तरस्यां दक्षिणस्यां यथा क्रमम् ॥१३४॥ व्यन्तराः शुषिरे भूना प्रचरन्ति ततोऽधिकाः । साधोग्रामायां प्रतीच्याममी स्युः ‘प्राच्यपेक्षया ॥१३५॥ उदीच्या दक्षिणस्यां च युक्तमेवाधिकाधिकाः ।. स्वस्थान नगरावास बाहुल्यतो यथा क्रमम् ॥१३६॥ व्यंतर देव पूर्व दिशा में सब से थोड़े होते हैं और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में अनुक्रम से इससे अधिक-अधिक होते हैं क्योंकि ये पोलान-खाली जगह में बहुत विचरते हैं, इसलिए अधोगांव वाली पश्चिम दिशा में ये अधिक होते हैं और उत्तर और दक्षिण दिशा में इनके रहने वाले नगर बहुत होते हैं, इसलिए वहां वे अधिक होते हैं। (१३४ से १३६) पूर्वस्यां पश्चिमायां च स्तोका ज्योतिष्क नाकिनः। दक्षिणस्यामुदीच्यां च स्युः क्रमेणाधिकाधिकाः ॥१३७॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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