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________________ (५०७) ननु.....कृष्ण पाक्षिक बाहुल्याद्यथामाहेन्द्रनाकिनः। असंख्येय गुणाः प्रोक्ताः सनत्कुमार नाकिनः ॥१२७॥ विमानानां कृष्णपाक्षिकाणां चाधिक्यतस्तथा । ते सौधर्मेऽप्य संख्यमाः कथं नेशाननाकिनः ॥१२८॥ यहां शंका करते हैं कि- कृष्ण पाक्षिक जीव बहुत हैं इसलिए माहेन्द्र के देवों से सनत्कुमार के देव असंख्यात गुणा हैं, इस तरह कहते हो तो सौधर्म देवलोक में भी विमान और कृष्ण पाक्षिक देव अधिक हैं इसलिए उनको भी ईशान के देवों से असंख्य गुणा कहना चाहिए, वह क्यों नहीं कहते ? (१२७-१२८) अत्रोच्यते हि वचन प्रामाण्यादुच्यते तथा । विचार गोचरो नास्मादृशामाप्तोदितं वचः ॥१२६॥ इस शंका का समाधान करते हैं- हमें तो शास्त्र का वचन प्रमाण है। आप्त जनों ने जो कहा है वह हमारे लिए विचार का अगोचर है। (१२६) ___तथोक्तं प्रज्ञापना वृत्तौ- "न इयं युक्तिः माहेन्द्र सनत्कुमारयोः अपि उक्ता। परतत्रं माहेन्द्रकल्पापेक्षया सनत्कुमारकल्पे देवा असंख्येय गुणा उक्ताः । इहतुसौधर्मे कल्पे संख्येय गुणा उक्ताः॥ तद् एतत् कथम्॥ उच्यते।वचन प्रामाण्यात् । न च अत्र पाठभ्रमः । यतः अन्यत्रापि उक्तम्- . . - इसाणे सत्वत्थ वि बत्तीस गुणाउ होन्ति देवीओ । संखेजा सोहम्मे तओ असंखा भवणवासी ।इति॥ . प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में भी कहा है कि- 'कोई ऐसा प्रश्न करता है किमाहेन्द्र और सनत्कुमार के सम्बन्ध में भी यही युक्ति कही, परन्तु वहां तो माहेन्द्र की अपेक्षा.से सनत्कुमार में देव असंख्य गुणा कहा है और यहां सौधर्म में संख्य गुणा कहा है, इस तरह क्यों है ? इस प्रश्न का निराकरण इस तरह करते हैं कि- हम जो कह रहे हैं वह प्रमाणभूत वचन-शास्त्र वचन के अनुसार कहते हैं। तथा यहां पाठ की फेर-फार की भी शंका नहीं है, क्योंकि अन्यत्र भी कहा है किईशान देवलोक में तथा सर्वत्र बत्तीस गुणा देवियां हैं, सौधर्म देवलोक में संख्यात गुणी हैं और भुवनपति में इससे असंख्य गुणा हैं।' ___ असंख्यपाश्च सौधर्म देवेभ्यो भवनाधिपाः । भवन्ति भवनेशेभ्योऽसंख्यना व्यन्तराः सुराः ॥१३०॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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