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________________ (४४३) उड़ते समय भी जिसके पंख समुद्ग अर्थात् डब्बे के समान बंद रहते हों वह 'समुद्ग पक्षी' कहलाता है और स्थिर रहने पर भी जिसके पंख फैले हुए रहते हों वह वितत पक्षी कहलाता है। ये दोनों जाति वाले पक्षी मनुष्य क्षेत्र से बाहर द्वीप समुद्र में ही रहते हैं। (१०५) संमूर्छिमा गर्भजाश्चेत्यमी स्युर्द्विविधाः समे । ' बिना ये गर्भ सामग्री जाताः समूर्छिमाश्च ते ॥१०६॥ तथा गर्भादि सामग्रया ये जातास्ते हि गर्भजाः । आसालिक न्विना संमूर्छिमा एव हि ते ध्रुवम् ॥१०७॥ और ये सब संमूर्छिम और गर्भज दो प्रकार के होते हैं । जो गर्भ की सामग्री से उत्पन्न होते हैं वह गर्भज कहलाते हैं और जो ऐसी सामग्री बिना उत्पन्न होते हैं वह संमूर्छिम कहलाते हैं। आसालिक जाति संमूर्छिम है । उसके अलावा अन्य सब गर्भज कहलाते हैं। (१०६-१०७) "यत्तु सूत्र कृतांगे आहार परिज्ञाध्ययने आसालिका गर्भ तया उक्ताः ते तत्सद्दश नामानो विजातीया एव संभाव्यन्ते। अन्यथा प्रज्ञापनादिभिः सह विरोधापत्तेः॥" . . . 'सूयगडांग सूत्र के आहार परिज्ञा अध्ययन में 'आसालिक' को गर्भज कहा है- वह आसालिका सदृश नाम वाली कोई अन्य जाति होनी चाहिए । ऐसा न हो तो प्रज्ञापना सूत्र में जो कहा है उसका इसके साथ में विरोध आता है।' अपर्याप्तश्च पर्याप्ताः प्रत्येकं द्विविधा इमे । एवं पंचाक्ष तिर्यंचः सर्वेऽपिस्युश्चतुर्विधाः ॥१०८॥ इति भेदाः ॥१॥ संमूर्छिम और गर्भज- इन प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त दो भेद होते हैं। इस तरह पंचेन्द्रिय तिर्यंच के चार भेद होते हैं। (१०८) इस तरह से श्लोक ६२ से १०८ तक में पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भेद समझाये हैं। यह प्रथम द्वार पूर्ण हुआ (१). विकलाक्ष वदुक्तानि स्थानान्येषां जिनेश्वरैः । तत्तत्स्थान विशेषस्तु स्वयं भाव्यो विवेकिभिः ॥१०६॥ इति स्थानानि ॥२॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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