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जिसमें खुर में अलग विभाग न हो- एकत्र जुड़ा हुआ हो वह एक खुर वाला कहलाता है, उदाहरण रूप में गधा, अश्व आदि हैं जो जुगाली नहीं करते हैं । (७२)
भिन्न येषां खुरास्ते स्युर्द्विखुरा बहुजातयः । महिषा गवया उष्ट्रा वराह छ गलैडकाः ॥७३॥ रुरवः शरभाश्चापि चमरा रोहिषा मृगाः । गोकर्णाद्या अमी सर्वे रोमन्थं रचयन्ति वै ॥७४॥ युग्मं ।
जिसके खुर भिन्न हों अर्थात् बीच में फटे हुए हों वे दो खुर वाले कहलाते हैं जैसे भैंस, गाय, ऊंट, सुअर, बकरी, मेंढा, रुरव, शरभ, चमर गाय, रोहिष मृग, गोकर्ण इत्यादि जुगाली करने वाले प्राणी होते हैं। (७३-७४) ...
स्यात्पद्य कर्णिका गंडी तद्वद्येषां पदाश्च ते । हस्ति गडंक खड्गाद्या गंडीपदाः प्रकीर्तिताः ॥७५॥ ।
गंडी अर्थात् पद्म के बीजकोश अथवा वृक्ष की जड़-मूल के समान जिसके पैर हो वह गंडी पद कहलाता है । उदाहरण रूप में हाथी, गेंडा, खंडक आदि हैं। (७५)
इति उत्तराध्ययन वृत्तौ ॥ प्रज्ञापना वृत्तौ तु- "गडी सवर्णकाराधिकरण स्थान- मिति ॥"
___ गंडी शब्द का यह अर्थ उत्तराध्ययन सूत्र की वृत्ति में किया है । प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में तो 'गंडी अर्थात् सोनी की ऐरण' कहा है। वर्तमान कोषकार तो गंडी अर्थात् वृक्ष की जड़ कहते हैं। ऐरण के लिये तो वे गंडु शब्द उपयोग करते हैं।
येषां पदा नखैदीर्घः संयुताः स्युः शुनामिव । तीर्थकरैस्ते सनखपदा इति निरूपिताः ॥७६॥ सिंहा व्याघा द्वीपिनश्च तरक्षा ऋक्षका अपि । . शृगालाः शशकाश्चित्राः श्वानश्चान्ये तथा विधाः ॥७७॥
. इति चतुष्पदा ॥ जिनके पैर श्वान के समान दीर्घ नख वाले होते हैंउनको नाखून-नहोर वाले तीर्थंकर देव ने कहा है। जैसे कि सिंह, व्याघ्र, गीदड़, तरस, भालू, सियार, चीता, श्वान और ऐसे और भी जो हों वह नाखून वाले कहलाते हैं। (७६-७७)
इतने चार पैर वाले होते हैं।