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________________ (४२०) . पूर्व और पश्चिम दिशा में सूर्य द्वीप और चन्द्र द्वीप यद्यपि समान ही हैं फिर भी पश्चिम में गौतम द्वीप विशेष है, इसलिए वहां घनता भी विशेष रूप है अत: वहां पृथ्वीकाय जीव भी विशेष ही हैं। (३३६) ननु प्रतीच्यामधिको द्वीपो यथास्ति गौतमः । तथात्र सन्त्यधोग्रामाः सहस्त्र योजनोण्डताः ॥३४०॥ तत्खात पूरित न्यायात् घनस्य शुषिरस्य च ।. . . साम्यात् पृथ्वीकायिकानां प्रत्यक् प्रचूरता कथम् ॥३४१॥ युग्मं । यहां कोई शंका करता है कि- जैसे पश्चिम दिशा में गौतम द्वीप विशेष है वैसे ही वहां सहस्र योजन गहरा अधोग्राम भी है, इसलिए खातपूरित न्याय से घनता और खाली जगह समान हो जाती है तो फिर पृथ्वीकाय जीवों की विशेषता किस तरह से हो सकती है ? (३४०-३४१) अत्र उच्यतेयथा प्रत्यगधोग्रामस्तथा प्राच्यामपि ध्रुवम् ।। गर्तादि संभवोऽस्त्येव किं च द्वीपोऽपि गौतमः ॥३४२॥ वक्ष्यमाणोच्छ्यायाम व्यासः प्रक्षिप्यते धिया । यद्यधोग्राम शुषिरे तदप्येषोऽतिरिच्यते ॥३४३॥ युग्मं । एवं च घंन बाहुल्यात् प्रतीच्यां प्रागपेक्षया । पृथ्वीकायिक बाहुल्यं युक्तमेव यथोदितम् ॥३४४॥ इस शंका का समाधान करते हैं- जैसे पश्चिम में अधोग्राम की खाली जगह है वैसे ही पूर्व में भी गर्तादिक की खाली जगह होनी संभव है और यहां बड़ा विस्तार वाला यह गौतम द्वीप है और यदि उसे अधोग्राम की खाली जगह में भर लिया जाय फिर भी वह बढ़ जाता है, अतः पूर्व की अपेक्षा पश्चिम में घनता बढ़ जाती है । इसलिए पृथ्वीकायिक जीवों की वहां विशेष रूप से जो अधिकता कही है वह युक्त ही है। . (३४२-३४४) भवन्त्यकायिकाः स्तोकाः पश्चिमायां ततः क्रमात् । प्राच्यां याम्यामुदीच्यां च विशेषेणाधिकाधिकाः ॥३४५॥ अप्काय के जीव पश्चिम दिशा के अन्दर सब से कम हैं और इससे अधिक पूर्व में, इससे अधिक दक्षिण में और इससे अधिक उत्तर दिशा में हैं। (३४५)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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