SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४०७) ततः सूक्ष्म वायु वह्नयम्भो भुवां स्युर्यथाक्रमम् । पर्याप्तानां जघन्यापर्याप्तां च गरीयसी ॥२८६॥ • पर्याप्तानां यथोत्कृष्टा क्रमेणासंख्य संगुणा । विशेषाभ्यधिका चैव विशेषाभ्यधिका पुनः ॥२८७॥ युग्मं । इससे सूक्ष्म पृथ्वी, अप् , तेउ और वायुकाय यदि पर्याप्त होती है तो उसकी जघन्य अवगाहना चार होती हैं, अपर्याप्त हो उसकी उत्कृष्ट चार हैं और पर्याप्त हो उसकी उत्कृष्ट चार अवगाहना हैं और अनुक्रम से असंख्य गुना विशेष अधिक और विशेष अधिक हैं। (२८६-२८७) एवं स्थूलानिलाग्न्यम्भः पृथ्वी निगोदिनामपि । प्रत्येकं त्रितयी भाव्याऽवगाहनामिदा क्रमात् ॥२८८॥ इत्येकचत्वारिंशत्स्युः किलावगाहनामिदः । पर्याप्त स्थूल निगोद ज्येष्टावगाहनावधि ॥२८६॥ इसी ही तरह अर्थात् जैसा सूक्ष्म के सम्बन्ध में कह गये हैं उसी ही तरह बादर वायुकाय, अग्निकाय, अपकाय, पृथ्वीकाय और निगोद के जीव- प्रत्येक की भी अवगाहना के भेदों के त्रिपुटी भाव का विचार करना (५४३=१५) । इस तरह पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्टी अवगाहना तक गिनने पर कुल मिलाकर अवगाहना के एकतालिस (१+८+२+१+२+४+४+४+१५=४१) भेद होते हैं। (२८८-२८६) पर्याप्त प्रत्येक तरोर्लयसंख्य गुणा ततः । तस्यापर्याप्तस्य गुर्वी स्याद संख्यगुणा ततः ॥२६०॥ और इससे पर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय की जघन्य अवगाहना एक असंख्य गुना है तथा इससे अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना एक असंख्य गुना है। (२६०) - ततोऽसंख्यगुणा तस्य पर्याप्तस्यावगाहना । सातिरेकं योजनानां सहस्र सा यतो भवेत् ॥२६१॥ . इससे अधिक असंख्य गुना पर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना एक है क्योंकि वह एक हजार योजन से अधिक होता है। इस तरह कुल चौवालीस (४१+१+१+१ = ४४) भेद होते हैं। (२६१) । ...यत्तु श्री जिनवल्लभ सूरिभिः स्वकृत देहाल्पबहुत्वोद्धारे अपर्याप्त प्रत्येक तरुत्कृष्टावगाहनातः पर्याप्त तरुत्कृष्टावगाहना विशेषाभ्यधिका उक्ता तत् चिन्त्यम्।
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy