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________________ (३६६) .. . परन्तु आचारांग सूत्र के अन्दर कुल कोटि इस तरह कही हैं - एकेन्द्रिय के बत्तीस लाख, दोन्द्रिय के आठ लाख, तेइन्द्रिय के आठ लाख, चउरिन्द्रिय के नौ लाख और वनस्पतिकाय के पच्चीस लाख, जलचरों के साढ़े बारह लाख, पक्षियों के बारह लाख, चतुष्पद (चार पैर वाले) के दस लाख, उरपरिसर्प के दस लाख और भुजपरिसर्प के नौ लाख तथा नरक के पच्चीस लाख, देवों के छब्बीस और मनुष्यों के चौदह लाख के कही हैं। (२१८ से २२०) ‘एवं द्वीन्द्रियादिष्वपि संग्रहण्यभिप्रायेण वक्ष्यमाणासु कुल कोटि संख्यासु मतान्तरं अत एवाभ्यूह्यम् ॥' . . . इस तरह मतान्तर है तथा दोन्द्रिय आदि जीवों की कुल कोटि जो अब कही जायेगी, उस संख्या सम्बन्धी भी दोनों में मतभेद है। ... तथा.....लक्षाणि कुल कोटीनां षोडशोक्तानि तात्तिकैः । केवलं पुष्प जातीनां तृतीयोपांग देशिभिः ॥२२१॥ तथा तीसरे उपांग में तत्त्व सम्बन्धी उपदेशक में जैसा कहा है - वहां केवल पुष्प की जातियां ही सोलह लाख कुल कोटि गिनाई हैं। (२२१) तानि चैवम् चतस्त्रो लक्ष कोटयोऽम्भोरुहाणां जाति भेदतः । कोरिटकादि जातीनां चतस्रः स्थल जन्मनाम् ॥२२२॥ चतस्त्रो गुल्म जातीनां जात्यादीनां विशेषतः । मधूकादि महावृक्षजानां तत्संख्य कोटयः ॥२२३॥ इति कुलानि ॥५॥ वह इस तरह- चार लाख जलरुह- कमल जाति वाले, चार लाख भूमिरुहकोरिंट आदि की जाति के, चार लाख जाइ आदि गुल्म जाति के और चार लाख मुहरा आदि बड़े वृक्षों के पुष्प की जातियां होती हैं। (२२२-२२३) इस तरह कुल संख्या हैं। (५) मिश्रा सचिताऽचिता च योनिरेषां भवेस्त्रिधा । उष्णा शीतोष्ण शीताग्रीन् बिना ते ह्यष्णयोनयः ॥२२४॥ पंचाप्येते विनिर्दिष्टा जिनैः संवृतयो नयः । उत्पत्ति स्थानमेतेषां स्पष्टं यत्नोपलभ्यते ॥२२५॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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